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जो न समझा कोई, वो ज़ज्बात हूँ मैं

                
                                                         
                            जो न समझा कोई, वो ज़ज्बात हूँ मैं
                                                                 
                            
सुबह की चाह में गुज़री, वो रात हूँ मैं
निभाने से डरते हैं क्यों लोग रिश्ते,
न बिखरे कोई रिश्ता, वो हालात हूँ मैं
हर सवाल का जवाब होता है मगर,
जो लाज़वाब हो बस, वो सवालात हूँ मैं
भागते हैं लोग क्यों छोड़ कर ज़िंदगी,
जो न कर सके कोई, वो करामात हूँ मैं
न सुनता है कोई किसी की बात "मिश्र",
मगर जो है सुनाने के लिए, वो बात हूँ मैं
-शांती स्वरूप मिश्र
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एक घंटा पहले

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