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ग़ज़ल

                
                                                         
                            प्यार दो तरफा हो, जरूरी तो नहीं,
                                                                 
                            
हर मोहब्बत को मिले वफ़ा, जरूरी तो नहीं।

कभी तन्हाई भी सुकून दे जाती है,
हर भीड़ में मिले रौशनी , जरूरी तो नहीं।

वो बस याद रखे हमें हर पल की तरह,
उसके दिल में बसे हम ही, जरूरी तो नहीं।

कभी खामोशी भी कह जाती है सब कुछ ,
हर बात जुबां से कही जाए, जरूरी तो नहीं।

काश वो लौट आए मुस्कुराकर ,
हर जुदाई का अंत हो सही , ये जरूरी तो नहीं ।

हम मरते रहे, और वो रहे बेखबर,
उन्हें हर बात बताई जाए, जरूरी तो नहीं।
-शिवम मिश्रा
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एक दिन पहले

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