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बिस्तर, सारी रात चुभने लगे, कोई बात तो होगी

                
                                                         
                            बिस्तर, सारी रात चुभने लगे, कोई बात तो होगी,
                                                                 
                            
कल, कहीं न कहीं तुमसे एक मुलाक़ात तो होगी।

यूं ही नहीं उठता धुंआ, ओस भीगी हरी घासों से,
थोड़ा इधर थोड़ा उधर, कलेजों में प्यास तो होगी।

मिज़ाज़-ए-मौसम का क्या, बेमियाज़ा भी होते हैं,
सावन भादौ न सही, कार्तिक में बरसात तो होगी।

तक़दीर में नहीं तो क्या, एक भी प्याला-ए-ज़ाम,
मैख़ानों में साक़ी और शराब की इफ़रात तो होगी।

मुकम्मल किसे हुई, मंज़िलें मोहब्बत में, 'मंज़र',
उनका तबस्सुम, हसीं इश्क़ की शुरुआत तो होगी।
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एक दिन पहले

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