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सरहद और सियासत की हिस्सेदारी

                
                                                         
                            जब किसी बम में
                                                                 
                            
बची रहती है चुनावी संभावना
तो वह बारूद नहीं
बन जाती है "मास्टरस्ट्रोक"

जब सैनिक की जान
हो जाती है “रील कंटेंट”
और शोक में डूबा परिवार
खड़ा होता है "नेता जी की संवेदना" के साथ—
जिसमें आँसू कम,कैमरे ज़्यादा होते हैं
एक माँ,
जिसने बेटे को पालते हुए
हर जन्माष्टमी को
कृष्ण की जगह "सीमा प्रहरी" की तस्वीर टांगी थी
अब रोती है—
उसका कृष्ण शहीद हो गया है,
पर मथुरा के सांसद को
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता

वो बाप
जो बेटे के पहली पोस्टिंग के दिन
गर्व से छाती फुला के कहता था—
“देश की सेवा है!”
अब कहता है—
"काश वो भी किसी घोटाले में जाता,
कम से कम ज़िंदा तो होता..."

जिनकी मिट्टी तक घर नहीं लौटती
उन्हें “बॉडी बैग” नहीं,
अब “राजनीतिक लिफाफा” कहा जाता है—
जो अगले भाषण में खोला जाएगा
सिलसिलेवार।

पहलगाम की पहाड़ियों पर
सिर्फ़ बर्फ़ नहीं गिरती,
वहाँ गिरते हैं उन बहनों के आँसू
जिन्होंने राखी भेजी थी,
और लौट के आया
"तिरंगे में लिपटा सन्नाटा।"

क्या तुमने कभी देखा हैं, शहीद की बेटी की आँखें?
उसमें न आक्रोश है, न आँसू—
बस एक सवाल है
"क्या मेरी पढ़ाई भी देशहित में रोक दी जाएगी?"

और संसद में?
नेता जी ताल ठोक कर बोलते हैं—
“हमारे जवान जान दे रहे हैं!”
(बिल्कुल सही,
ताकि आप दोबारा कुर्सी ले सकें)

एयर स्ट्राइक के बाद
जो चैनल सबसे तेज़ था,
उसने सबसे पहले हमले के वीडियो बनाए—
गायब दुश्मन, नकली मकान
लेकिन असली शौर्य गीत
पीछे पट्टी चल रही थी -
"अबकी बार, सीमा पार!"

कभी फुर्सत में पूछिएगा उस सैनिक से,
जो जिंदा लौटा है
पर आधा शरीर छोड़ आया है—
कि "देश ने क्या दिया?"
वो मुस्कुराएगा नहीं,
क्योंकि उसकी हँसी
"सेवानिवृत्ति वेतन" की फ़ाइलों में अटकी हुई है

नेताओं को शहीद पसंद हैं—
ज़िंदा सैनिक नहीं
क्योंकि ज़िंदा लोग
माँग करते हैं—
सम्मान, वेतन, सुविधा
और शहीद?
उन्हें बस एक चौक पर नाम चाहिए
जहाँ लोग भूल सकें
कि ये मौत "मुफ्त की देशभक्ति" नहीं थी

यह कविता उन नासूरों पर उंगली रखती है
जो तिरंगे में लपेट कर छिपा दिए जाते हैं,
और हर चुनाव में
फिर से खोला जाता है
देशभक्ति का वही पुराना,
रक्तरंजित लिफाफा।
- तेजपाल सिंह 'तेज'
- हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
3 सप्ताह पहले

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