उंगली धाम के मेरी,
चलना सिखलाया
कांधे पर बैठाकर पूरा गांव घुमया
मेरी उदासी को बिन कहे समझने वाले ,
कहानियाँ सुना के मुझे फिर से हंसाने वाले
हो जाती जब मुझसे गलती कोई
मुझे हमेशा बचाया मम्मी की डाँट से ,
स्वाभिमान से जिन्होंने जीना सिखालाया
अच्छे बुरे का फर्क जिन्होंने बताया
रब से भी पहले आता नाम मेरी जुबान पर
वो मेरे पापा ,वो मेरे पापा !!
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