जिंदगी के अफसाने को
तुमने फ़साना बना दिया।
दौलत मोहब्बत का होते हुए
नफ़रत का सिलसिला बना दिया।
लगा के अपनी खुशियों में आग
ख़ुद के हाथों को कातिल बना दिया।
बना के पैमाना अपने तृष्णा का
ख़ुद को जहन्नुम का रास्ता दिखा दिया।
देती है पटखनी ज़िंदगी जब
पराकाष्ठा वो बदहवासी का आलम होता है।
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