अपने वादे से मुकरने का हक है तुझे।
हां, हर हद से गुजरने का हक है तुझे।।
अगरचे , हर सिम्त है रूत खिंजा की।
मगर,फिर भी संवरने का हक है तुझे।।
चारागर की बेरूखी है, अपनी जगह।
हर दर्द से उबरने का तो, हक है तुझे।।
जो तन्हा हैं,हकदार हैं जीने के वे भी।
हर दरिया मे , उतरने का हक है तुझे।।
राह-ए-हयात के मोड़ पे,सलामत रहे।
खुशबू बन , बिखरने का हक है तुझे।।
-यूनुस खान
- हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
कमेंट
कमेंट X