सदाबहार अभिनेता धर्मेंद्र की अपनी एक अलग अदा थी। वह अपनी मुस्कान तथा गुस्सा के लिए प्रसिद्ध रहे। फिल्मी पर्दे पर उन्होंने कुछ अच्छे गीत गाए हैं। इन्हीं गीतों में से एक गीत 1966 में रिलीज उनकी फिल्म 'आए दिन बहार के' का है। इस स्लाइड में हम इसी गीत को याद करेंगे और उस पर गहराई से बात करेंगे। गीत के बोल हैं-मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे... यह गीत प्रेमिका को उसके प्रेमी की सबसे बड़ी बद्दुआ है।
आनंद बक्षी के इस गीत को फिल्म में अभिनेता धर्मेंद्र और नायिका आशा पारेख पर फिल्माया गया है। लक्ष्मीकांत प्यारे लाल ने इसे संगीत से सजाया है। मोहम्मद रफी ने इसमें अपनी कर्णप्रिय आवाज दी है। हंसमुख अभिनेता धर्मेंद्र ने इस गीत को अपने मोहक अंदाज में पर्दे पर पेश किया है। गीत की शुरुआती लाइन में ही वह शानदार ढंग से अपनी नाराजगी जाहिर करते हैं।
प्रेम दो लोगों के बीच का इकरार है
'मेरे दिल से सितमगर तुने अच्छी दिल्लगी कि है,
के बनके दोस्त अपने दोस्तों से दुश्मनी कि है'..
प्रेम दो लोगों के बीच होता है। यह उनका आपस में इकरार है। रजामंदी है। इसमें देश, काल, वातावरण और समाज का तीसरा कोई नहीं होता। आपस की मौन सहमति के बाद दो लोग इस कठिन राह में चलने को राजी होते है। दोनों में से अगर कोई एक इस राह से कभी अलग हो जाए या साथ छोड़ दे तो दूसरे के जीवन का समाज में काफी अपमान होता है।
उसके लिए जीना मुश्किल हो जाता है। उसके लिए सिर्फ मौत का रास्ता ही बचता है। प्रेम में धोखा खाने वाले ही इस अपमान को समझते होंगे। गीत में धर्मेंद्र अपने इसी अपमान को याद करते हुए आशा पारेख को कोसते हैं। रोबीले शब्दों में उनका दिल से कोसना मुझे बहुत अच्छा लगा। इसीलिए यह गीत मेरे दिल के काफी करीब है।
आजकल तो प्रेमी धोखा मिलने के बाद प्रेमिका को मौत के घाट उतार देते हैं। लेकिन प्रेम में धोखे का ऐसा इंतकाम तो प्रेम की संपूर्ण परिभाषा नहीं कही जा सकती। फिल्म के इस गीत में प्रेमी प्रेमिका की जान लेने के बजाय उसे दिल से इतनी बद्दुआ देता है कि प्रेमिका मौत से भी ज्यादा बदतर स्थिति में आ जाती है। काफी जलील हो जाती है। गीत के बोल प्रेमिका को उसकी गलती का गहरा एहसास दिलाते हैं और वह पश्चाताप की आग में जलने लगती।
'मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे
मुझे ग़म देने वाले तू खुशी को तरसे
तू फूल बने पतझड़ का, तुझ पे बहार न आए कभी
मेरी ही तरह तू तड़पे तुझको क़रार न आए कभी
जिये तू इस तरह की ज़िंदगी को तरसे'
धर्मेंद्र गीत के जरिए आशा पारेख से कहते हैं कि तुम पतझड़ का फूल बनो और तुम पर कभी बहार नहीं आए। तुम्हें जिंदगी में सिर्फ और सिर्फ तड़प मिले, तुम्हे कभी किसी का करार नहीं मिले। गम का करार भी नहीं मिले। कहते हैं गम भी काफी देर बाद आदमी को शांत करता है। लेकिन मैं बद्दुआ देता हूं कि तुम गम में हरदम तड़पते रहो।मै
महबूब को जिंदगी भर तड़पने की बद्दुआ
'इतना तो असर कर जाएं मेरी वफ़ाएं ओ बेवफ़ा
जब तुझे याद आएं अपनी जफ़ाएं ओ बेवफ़ा
पशेमान होके रोए, तू हंसी को तरसे'
गीत सुनकर आपको लगेगा कि सच्चा प्रेम करने वाले प्रेमी के दिल से ही इस तरह की बद्दुआ निकल सकती है। गीत के हर बोल मन को अच्छे लगते हैं क्योंकि वह सच्चे दिल के किसी प्रेमी से निकलते हैं। इस गीत में बद्दुआ दी गई है लेकिन इसके बाद भी यह गीत अच्छा लगता इसकी वजह यही है कि यह एक सच्चे दिल की तड़प है।
'तेरे गुलशन से ज़्यादा वीरान कोई वीराना न हो
इस दुनिया में तेरा जो अपना तो क्या, बेगाना न हो
किसी का प्यार क्या तू बेरुख़ी को तरसे'
गीत के अंतिम अंतरे में धर्मेंद्र कहते हैं मेरी वफा और अपनी जफा याद कर तुम मजबूर होकर सिर्फ रोओ और हंसी को तरसते रहो, यहीं बद्दुआ मैं तुम्हारे लिए करता हूं।
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प्रेम दो लोगों के बीच का इकरार है
14 घंटे पहले
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