गजानन माधव मुक्तिबोध हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण नामों में से एक हैं। मुक्तिबोध की कविताओं को समझकर उनके जीवन का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। लेकिन वो क्या घटना थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने मुक्तिबोध के लिए साहित्यकारों के आगे हाथ जोड़े, यह वाकया भारतीय ज्ञानपीठ की किताब ‘चांद का मुंह टेढ़ा है’ में लिखा है।
7 फरवरी 1964 का दिन था और मुक्तिबोध को पक्षाघात हुआ था। दिल्ली से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के नाम एक तार गया कि, ‘मुक्तिबोध की चिकित्सा शासकीय स्तर की हो’। तार भेजने वाले थे, मैथिलीशरण, काका कालेलकर, मामा वरेरकर, जैनेन्द्र कुमार, आशोक वाजपेयी, श्रीकान्त वर्मा आदि।
इलाज शुरू हुआ लेकिन जून आते-आते धीरे धीरे बेहोशी बढ़ती है और थोड़ी-थोड़ी पहचान शेष रह जाती है।
17 जून की शाम को लाल बहादुर शास्त्री के ल़ॉन पर बच्चन, माचवे और नए सब कवि खड़े थे और नव-निर्वाचित प्रधानमंत्री दिन भर के काम से थके उसी आस्थापूर्वक विनम्रता से दोनों हाथ जोड़े आते हैं और कहते हैं कि,”आप तो सब साहित्य के पुजारी हैं। मैं क्या कर सकता हूं।”
तब बच्चन जी ने उन्हें पूरी स्थिति से अवगत कराया और मुक्तिबोध को दिल्ली बुलाए जाने की बात तय हुई। इसके बाद सहायतार्थ धनराशि भेजी और व्यवस्था की गयी कि वे वाताुकूलित डिब्बे में लाए जाएं।
साभार- चांद का मुंह टेढ़ा है
भारतीय ज्ञानपीठ
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