आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

आज का शब्द: सुखमा और हरिवंशराय बच्चन की कविता- इसकी मुझको लाज नहीं है

आज का शब्द
                
                                                         
                            'हिंदी हैं हम' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- सुखमा, जिसका अर्थ है- शोभा, छवि। प्रस्तुत है हरिवंशराय बच्चन की कविता- इसकी मुझको लाज नहीं है
                                                                 
                            

मैं सुख पर, सुखमा पर रीझा, इसकी मुझको लाज नहीं है।

जिसने अलियों के अधरों में
रस रक्खा पहले शरमाए,
जिसने अलियों के पंखों में
प्यास भरी वह सिर लटकाए,

आँख करे वह नीची जिसने
यौवन का उन्माद उभारा,

मैं सुख पर, सुखमा पर रीझा, इसकी मुझको लाज नहीं है।

मन में सावन-भादो बरसे,
जीभ करे, पर, पानी-पानी!
चलती फिरती है दुनिया में
बहुधा ऐसी बेईमानी,

पूर्वज मेरे, किंतु, हृदय की
सच्चाई पर मिटने आए,

मधुवन भोगे, मरु उपदेशे मेरे वंश रिवाज नहीं है।
मैं सुख पर, सुखमा पर रीझा, इसकी मुझको लाज नहीं है।

चला सफर पर जब तब मैंने
पथ पूछा अपने अनुभव से
अपनी एक भूल से सीखा
ज्यादा, औरों के सच सौ से

मैं बोला जो मेरी नाड़ी
में डोला जो रग में घूमा,

मेरी वाणी आज किताबी नक्शों की मोहताज नहीं है।
मैं सुख पर, सुखमा पर रीझा, इसकी मुझको लाज नहीं है।

अधरामृत की उस तह तक मैं
पहुँचा विष को भी मैं चख आया,
और गया सुख को पिछुआता
पीर जहाँ वह बनकर छाया,

मृत्यु गोद में जीवन अपनी
अंतिम सीमा पर लेटा था,

राग जहाँ पर तीव्र अधिकतम है उसमें आवाज़ नहीं है।
मैं सुख पर, सुखमा पर रीझा, इसकी मुझको लाज नहीं है।

हमारे यूट्यूब चैनल को Subscribe करें।   


 
16 घंटे पहले

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही

अब मिलेगी लेटेस्ट, ट्रेंडिंग और ब्रेकिंग न्यूज
आपके व्हाट्सएप पर