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Urdu Poetry: आज तक कैसे गुज़ारी है ये अब पूछती है

उर्दू अदब
                
                                                         
                            आज तक कैसे गुज़ारी है ये अब पूछती है
                                                                 
                            
रात टूटे हुए तारों का सबब पूछती है

तू अगर छोड़ के जाने पे तुला है तो जा
जान भी जिस्म से जाती है तो कब पूछती है

कल मिरे सर पे मिरा ताज था तो सब थे मिरे
आज दुनिया ये मिरा नाम-ओ-नसब पूछती है

मैं चराग़ों की लवें थाम के सो जाता हूँ
रात जब मुझ से मिरा हुस्न-ए-तलब पूछती है

~ अज़्म शाकरी

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18 घंटे पहले

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