वह नाटक भी करना पड़ता
जिसका पूर्वाभ्यास नहीं है
दर्शक आशायें बाँधे हैं
निर्देशक भी पास नहीं है !
किसी काम के नहीं यहाँ पर
रटे हुये संवाद हमारे
कोई नहीं समझता हमको
पीड़ा हर्ष विषाद हमारे
पात्र यहाँ प्यासा है लेकिन
मन में कोई प्यास नहीं है !
करने को करता रहता जग
निंदा और प्रशस्ति हमारी
लेकिन हम पर है बस ताली
बजवाने की ज़िम्मेदारी
सारे दृश्य सफल हों इतना -
भी ख़ुद पर विश्वास नहीं है !
रंगमंच की इस दुनिया में
पात्रों के कुछ मोल नहीं हैं
कठपुतली की गति न स्वयं की
उस के अपने बोल नहीं हैं
जीवन तो जीवन है जीवन
हर दर्शक का दास नहीं है !
साभार: ज्ञानप्रकाश आकुल की फेसबुक वाल से
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