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क़तील शिफ़ाई: यारो किसी क़ातिल से कभी प्यार न माँगो

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यारो किसी क़ातिल से कभी प्यार न माँगो
अपने ही गले के लिए तलवार न माँगो

गिर जाओगे तुम अपने मसीहा की नज़र से
मर कर भी इलाज-ए-दिल-ए-बीमार न माँगो

खुल जाएगा इस तरह निगाहों का भरम भी
काँटों से कभी फूल की महकार न माँगो

सच बात पे मिलता है सदा ज़हर का प्याला
जीना है तो फिर जीने का इज़हार न माँगो

उस चीज़ का क्या ज़िक्र जो मुमकिन ही नहीं है
सहरा में कभी साया-ए-दीवार न माँगो

एक दिन पहले

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