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Bashir Badr Poetry: भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा 

उर्दू अदब
                
                                                         
                            भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा 
                                                                 
                            
घर छोड़ के मत जाओ कहीं घर न मिलेगा 

फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम 
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा 

आँसू को कभी ओस का क़तरा न समझना 
ऐसा तुम्हें चाहत का समुंदर न मिलेगा 

इस ख़्वाब के माहौल में बे-ख़्वाब हैं आँखें 
जब नींद बहुत आएगी बिस्तर न मिलेगा 

ये सोच लो अब आख़िरी साया है मोहब्बत 
इस दर से उठोगे तो कोई दर न मिलेगा 
3 वर्ष पहले

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