'अल्वी' ये मो'जिज़ा है दिसम्बर की धूप का
सारे मकान शहर के धोए हुए से हैं
- मोहम्मद अल्वी
'सैफ़ी' मेरे उजले उजले कोट पर
मल गया कालक दिसम्बर देख ले
- मुनीर सैफ़ी
ये साल भी उदासियाँ दे कर चला गया
तुम से मिले बग़ैर दिसम्बर चला गया
- अज्ञात
इरादा था जी लूँगा तुझ से बिछड़ कर
गुज़रता नहीं इक दिसम्बर अकेले
- ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
आगे पढ़ें
कमेंट
कमेंट X