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जौन एलिया: है अजब हाल ये ज़माने का, याद भी तौर है भुलाने का

jaun ellia famous ghazal hai ajab haal ye zamane ka yaad bhi taur hai bhulane ka
                
                                                         
                            


है अजब हाल ये ज़माने का
याद भी तौर है भुलाने का

पसंद आया बहुत हमें पेशा
ख़ुद ही अपने घरों को ढाने का

काश हम को भी हो नसीब कभी
ऐश-ए-दफ़्तर में गुनगुनाने का

आसमाँ है ख़मोशी-ए-जावेद
मैं भी अब लब नहीं हिलाने का

जान क्या अब तिरा पियाला-ए-नाफ़
नश्शा मुझ को नहीं पिलाने का

शौक़ है इस दिल-ए-दरिंदा को
आप के होंट काट खाने का

इतना नादिम हुआ हूँ ख़ुद से कि मैं
अब नहीं ख़ुद को आज़माने का

क्या कहूँ जान को बचाने मैं
'जौन' ख़तरा है जान जाने का

ये जहाँ 'जौन' इक जहन्नुम है
याँ ख़ुदा भी नहीं है आने का

ज़िंदगी एक फ़न है लम्हों को 
अपने अंदाज़ से गँवाने का
 

एक दिन पहले

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