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जिगर मुरादाबादी की ग़ज़ल: इश्क़ में ला-जवाब हैं हम लोग

उर्दू अदब
                
                                                         
                            इश्क़ में ला-जवाब हैं हम लोग 
                                                                 
                            
माहताब आफ़्ताब हैं हम लोग 

गरचे अहल-ए-शराब हैं हम लोग 
ये न समझो ख़राब हैं हम लोग 

शाम से आ गए जो पीने पर 
सुब्ह तक आफ़्ताब हैं हम लोग 

हम को दावा-ए-इश्क़-बाज़ी है 
मुस्तहिक़्क़-ए-अज़ाब हैं हम लोग 

नाज़ करती है ख़ाना-वीरानी 
ऐसे ख़ाना-ख़राब हैं हम लोग 

हम नहीं जानते ख़िज़ाँ क्या है 
कुश्तगान-ए-शबाब हैं हम लोग 

तू हमारा जवाब है तन्हा 
और तेरा जवाब हैं हम लोग 

तू है दरिया-ए-हुस्न-ओ-महबूबी 
शक्ल-ए-मौज-ओ-हबाब हैं हम लोग 

गो सरापा हिजाब हैं फिर भी 
तेरे रुख़ की नक़ाब हैं हम लोग 

ख़ूब हम जानते हैं अपनी क़द्र 
तेरे ना-कामयाब हैं हम लोग 

हम से ग़फ़लत न हो तो फिर क्या हो 
रह-रव-ए-मुल्क-ए-ख़्वाब हैं हम लोग 

जानता भी है उस को तू वाइ'ज़ 
जिस के मस्त-ओ-ख़राब हैं हम लोग 
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2 वर्ष पहले

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