हम उन्हें वो हमें भुला बैठे
दो गुनहगार ज़हर खा बैठे
हाल-ए-ग़म कह के ग़म बढ़ा बैठे
तीर मारे थे तीर खा बैठे
आँधियो जाओ अब करो आराम
हम ख़ुद अपना दिया बुझा बैठे
जी तो हल्का हुआ मगर यारो
रो के हम लुत्फ़-ए-ग़म गँवा बैठे
बे-सहारों का हौसला ही क्या
घर में घबराए दर पे आ बैठे
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