कतरा के गुज़रता है तो देखा नहीं जाता
बस्ती में ग़रीबों की उजाला नहीं जाता
दौलत से कहाँ जुड़ते हैं टूटे हुए रिश्ते
शीशे को कभी गोंद से जोड़ा नहीं जाता
इस झूट के बाज़ार में सच ढूँडने वाले
सूखे हुए कपड़े को निचोड़ा नहीं जाता
परियों की हसीं बाँहों में वो झूल रहा है
सोते हुए बच्चे को झिंझोड़ा नहीं जाता
ये चाँद सितारे भी हैं सूरज भी है रौशन
फैला है जो दुनिया में अंधेरा नहीं जाता
सोहबत में बुरों की वो रहा करता है 'महवर'
इस बात पे बेटे को निकाला नहीं जाता
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