ज़माने अब तिरे मद्द-ए-मुक़ाबिल
कोई कमज़ोर सी औरत नहीं है
- फरीहा नक़वी
औरत हूँ मगर सूरत-ए-कोहसार खड़ी हूँ
इक सच के तहफ़्फ़ुज़ के लिए सब से लड़ी हूँ
- फ़रहत ज़ाहिद
अभी रौशन हुआ जाता है रस्ता
वो देखो एक औरत आ रही है
- शकील जमाली
औरत को समझता था जो मर्दों का खिलौना
उस शख़्स को दामाद भी वैसा ही मिला है
- तनवीर सिप्रा
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