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Social Media Poetry:कुंज कुंज कुलित कलियाँ भौंरे मंडराए गली गली..

सोशल मीडिया
                
                                                         
                            पढ़िए अभिषेक दुबे जी शानदार कविता-
                                                                 
                            

कुंज कुंज कुलित कलियाँ
भौंरे मंडराए गली गली
कली कल्पित आह्नान
किसके संग गूँजेगी सिसकियां
मदहोश पवन चले जब 
बयारों पर तब कौन होगा
मदमस्त बौराये आम की
मंजरियां हवा के झोंको
से आक्रांत फूल टेसू के
करते आमंत्रण बसंत का
नवयौवना के अंग अंग
फड़कते ठंडी हवा के प्रवाह
से पतझर के बाद से कोपलें
फूटी सृजन के श्रृंगार से 
रोम रोम पुलकित हुए आगे पढ़ें

2 वर्ष पहले

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