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Social Media Poetry:कुंडली तो मिल गई है, मन नहीं मिलता, पुरोहित! क्या सफल परिणय रहेगा?

सोशल मीडिया
                
                                                         
                            पढ़िए छोटी उम्र की बड़ी कवयित्री इति शिवहरे का शानदार गीत-
                                                                 
                            

 कुंडली तो मिल गई है, 
   मन नहीं मिलता, पुरोहित!
   क्या सफल परिणय रहेगा?

गुण मिले सब जोग वर से, गोत्र भी उत्तम चुना है।
ठीक  है  कद, रंग  भी  मेरी  तरह  कुछ गेंहुआ है।
मिर्च  मुझ  पर  माँ न जाने क्यों घुमाये जा रही है?
भाग्य से है प्राप्त घर-वर, बस यही समझा रही है।

भानु, शशि, गुरु, शुभ त्रिबल, गुण-दोष,
   है सब-कुछ व्यवस्थित,
   अब न प्रति-पल भय रहेगा?

रीति-रस्मों  के  लिए  शुभ  लग्न  देखा  जा रहा है।
क्यों अशुभ कुछ सोचकर, मुँह को कलेजा आ रहा है?
अब अपरिचित  हित  यहाँ मंतव्य जाना जा रहा है।
किंतु  मेरा  मौन 'हाँ' की  ओर   माना  जा  रहा है। आगे पढ़ें

2 वर्ष पहले

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