सच बताना लौट आऊँ तो
क्या मुझे स्वीकार कर लोगे !
ला न पाऊंगा सितारे एक दिन तुमने कहा था
मैं नहीं काबिल तुम्हारे एक दिन तुमने कहा था
मैं सितारों को लुटाऊँ तो
क्या मुझे स्वीकार कर लोगे !
खींच कर तुमको उजाले दूर मुझसे जा रहे थे
तुम महल का स्वप्न पाले दूर मुझसे जा रहे थे
वे महल तुमको दिखाऊं तो
क्या मुझे स्वाकार कर लोगे !
वह प्रतीक्षा का अभागा क्षण अभी मैला नहीं है
देह मैली हो चुकी है मन अभी मैला नहीं है
आज फिर तुम को बुलाऊँ तो
क्या मुझे स्वीकार कर लोगे !
साभार: ज्ञान प्रकाश आकुल की फेसबुक वाल से साभार
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