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अमृता प्रीतम: क्यूं साहिर और इमरोज़ के लव-एंगल से आगे नहीं याद आतीं अमृता

amrita pritam and her love triangle with sahir ludhianvi and imroz
                
                                                         
                            
अमृता प्रीतम से पहला परिचय कॉलेज के दिनों में हुआ था। साहिर से जानकारी उनसे पहले से थी। फिर किसी ने बताया कि अमृता को साहिर बेपनाह पसंद थे। मैं साहिर की फ़ैन थी, जान लिया था कि शायद ही अब कोई इमोशन बचा है जिसे उन्होंने अपने शब्द न दिए हों। ज़ाहिर है इसके बाद मैंने अमृता को पढ़ना शुरु किया, पढ़ने से अधिक जानना। ये ख़ुमारी आती-जाती रही। इस बीच उनकी कई कविताएं पढ़ीं, कुछ कहानियां और ढेर सारे क़िस्से। उनके कुछ इंटरव्यू भी सुने। कविताओं से जाना कि अमृता के पास बिम्ब भरमार थे, कई बार तो लगा कि गुलज़ार ने कुछ-कुछ बिम्ब वहां से सीखे भी हैं।

रात-कुड़ी ने दावत दी
सितारों के चावल फटक कर
यह देग किसने चढ़ा दी

यहां रात ने दावत दी है और सितारे चावल हैं। 

सपने - जैसे कई भट्टियाँ हैं
हर भट्टी में आग झोंकता हुआ
मेरा इश्क़ मज़दूरी करता है

और भी बहुत सी कविताए हैं, ये बस कुछ-एक उदाहरण मात्र हैं। जितनी और जो कविताएं पढ़ीं, उनमें अलग बिम्ब दिखे और जाने। वारिस शाह, फिर मिलांगी,आत्ममिलन तो वैसे भी उनकी लोकप्रिय कविताएं हैं। फिर उनका उपन्यास पढ़ा पिंजर, जिस पर फ़िल्म भी बनी है। विभाजन की विभीषिका को बताता उपन्यास, एक ही सिटिंग में पूरा कर दिया था। अमृता ने जो कुछ ख़ुद लिखा है, उसके अलावा भी बहुत कुछ ऐसा है जो उन पर लिखा गया है। एक किताब में मैंने पढ़ा था कि कैसे अपने जीवन के आख़िर-आख़िर तक स्वास्थ्य संबंधी विकारों की वजह से उन्हें नींद न आने की परेशानी हो गई थी। एक महिला ने रेकी हीलिंग जैसी किसी पद्धति का प्रयोग किया और उन्हें नींद आई।

अमृता जैसी बोल्ड और व्यवहारिक महिला भी इस तरह के प्रयोग में विश्वास करती थी,सोचना अजीब था। हालांकि ये तमाम बातें अनुभव पर आधारित अधिक होती हैं। लेकिन एक बात और कि वे जो सपने देखती थीं, उनका अर्थ पूछने के लिए मनोवैज्ञानिक के पास जाती थीं, ये और भी अजीब बात है। अमृता की एक किताब है - शक्ति-कणों की लीला; इसमें तमाम सूफ़ी-सनातन संतों की कहानी है। वे लोग अपने अध्यात्म और विश्वास के कारण मारे गए थे। लेकिन इसमें एक संत का क़िस्सा ऐसा भी है जिन पर वायु सिद्धि थी। अमृता ने लिखा है कि उन्होंने ख़ुद भी उन्हें अपनी खिड़की से आसमान में देखा था। ये अमृता के व्यक्तित्व का एक पहलू और है कि वह तमाम पराभौतिक विषयों में यक़ीन रखती थीं।

अमृता की बहुत कहानियां मैंने नहीं पढ़ीं, कविताएं पढ़ीं और उपन्यास। जो लोग टकराए और जिनसे अमृता को लेकर बात भी हुई, वे भी बहुत पढ़े नहीं मालूम हुए। घूम फिरकर बात इमरोज़ की पीठ से साहिर की छाती तक आ ही जाती थी। ये कहानियां अब प्रेम की किंवदंती की तरह लगती हैं जिन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित किया जाता है। जिनमें सपने दिखते हैं, जिनमें रोमांच है प्रेम में डूबे होने का, जिमें प्रेम की असफलता और फिर उस पर लिखी आत्मकथा है और एक व्यक्ति जो सारी बातें जानकर भी प्रेम करने को आतुर है, वो अति-समर्पित है। अमृता का लिखा सारा कुछ रसीदी टिकट के कुछ हिस्सों के नीचे आकर दब गया, ख़ुदाई की मेहनत यूं भी कौन करे। एक कार्यक्रम में जब जावेद साहब साहिर पर बोल रहे थे तो लोग वहां भी अमृता का ज़िक्र ले आए जबकि ख़ुद साहिर ने ही कभी ताउम्र अमृता का ज़िक्र नहीं किया। अमृता भले उनकी झूठी सिगरेट बचा कर रखतीं और उन्हें पीने लगतीं। 

नए पढ़ने-लिखने वाले भी जब अमृता को जानते हैं तो उनके नारीवादी कथनों और कहानियों से पहले उनके जीवन के इन्हीं पहलुओं को जानते हैं। ख़ुशवंत सिंह ने तो कहा भी था कि अमृता ने साहिर की छाती पर इतना बाम मला है कि अब उनके फफोले उठ गए होंगे। ये तंज में कही गई बात थी लेकिन असल बात ये है कि अमृता संभवत:इतने अधिक मोह में थीं कि चाहती भी यही थीं कि लोग उनके और साहिर के प्रेम को जानें। इमरोज़ के साथ भी उन्होंने लंबा वक़्त बिताया था एक ही छत के नीचे लेकिन शादी नहीं की। लिव-इन रिलेशनरिप  में रहना जब आज इतना बड़ा मुद्दा है तो तब तो और भी साहस का काम था। जिसे अमृता ने किया और जिया। 

अंत में फिर भी सवाल रह ही जाता है कि अमृता ने बीस से अधिक उपन्यास, 18 कविता-संग्रह और 10 तो कहानी-संग्रह लिखे ही हैं लेकिन बात उसी ट्राएंगल तक रह जाती है, उस बरमूडा ट्राएंगल की तरह जिसमें अमृता को पढ़ने वाला खिंचता चला जाता है और किसी सतह पर जाकर फंस जाता है।

एक वर्ष पहले

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