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JLF 2025: देशी-विदेशी प्रशंसकों के जमावड़े के साथ सजा साहित्य का मेला

jaipur literature festival 2025 at clarks amer
                
                                                         
                            

जयपुर के लोग साल भर इसी मेले का इंतज़ार करते हैं। ट्रेन में मिले सहयात्री से लेकर गुलाबी नगरी के ऑटो/कैब वालों तक सभी को इसकी जानकारी भी रहती है। वे जानते हैं कि जब ये मेला होगा तो बाहर तक भीड़ लगी रहेगी, ट्रैफ़िक पर भी असर दिखेगा। पूरे मेले में राजस्थानी छाप की साड़ियों से सजावट थी तो कहीं गुलाबी पर्चे लहरा रहे थे। एक कोने में कालबेलिया नृत्य की तैयारी करते लोग थे तो कहीं रावणहत्था बजाते कलाकार। खाने-पीने के कई सैक्शन थे और कई प्रकार। लगभग सारे ही लोग जयपुर के थे, कुछ एक दुकारदार ही थे जो बाहर से भी आए थे। इन दुकानों पर फैन्सी कपड़ों से लेकर ऑर्गेनिक शहद तक सभी कुछ था। 

आमेर क्लार्क्स में इस पूरी तैयारी के साथ सुबह के 10 बजे के साथ ही साहित्य और समाज के विभिन्न विषयों पर बातचीत शुरु हो गई थी। एक ही समय पर अलग-अलग हॉल और लॉन में दर्शक अपनी पसंद के हिसाब से सत्र सुनने जाते हैं। दो दिन के भीतर कुछ सत्रों के कर्णास्वादन का अवसर मिला। एक सत्र जावेद अख़्तर साहब का था जिसमें उन्होंने एक बात कही जिससे पूरा लॉन तालियों से गूंज उठा। उन्होंने कहा कि - जो लोग शायरी नहीं कर पाते, वही हिंदू-मुसलमान होते हैं, चूंकि कविता तो प्रेम की भाषा होती है। नए लिखने-पढ़ने वालों के लिए उन्होंने कहा कि - अपने काम से संतुष्ट नहीं होना चाहिए, संतुष्ट होते ही ग्राफ़ गिरने लगता है। इस बीच उनके प्रशंसक और सुनने वाले लगातार तालियां बजाकर उत्साहित होते रहे। 

इसी दिन वहां मौजूद क्रॉसवर्ड लाइब्रेरी जाने का मौका भी हुआ, जहां पुस्तकालय में हिंदी के नाम एक ही सेक्शन था, बाक़ी की अलमारी अंग्रेज़ी की किताबों से भरी थी। इसमें भी हिंदी की चुनिंदा किताबें ही देखने को मिलीं। इस मेले के दर्शक सभी तरह के थे, स्कूल के बच्चे, विदेशी, हिंदी प्रेमी, अंग्रेज़ी प्रेमी भी। उसमें हिंदी की किताबें और हिंदी के सत्र बहुत ही कम थे। इरा टाक, मनीषा कुलश्रेष्ठ, दुष्यंत, पुष्पेष पंत और कैलाश सत्यार्थी से बाचतीत भी हुई जो अमर उजाला काव्य के फेसबुक और अमर उजाला के यूट्य़ूब चैनल पर है।

एक सत्र पुष्पेष पंत और साहू पटोले का था जिसमें दलित रसोई के बारे में बात की गई थी। साहू पटोले ने बताया कि उन्हें अपनी जाति के खान-पान पर कोई भी शर्म नहीं है क्यूं ये खाना कहीं न कहीं उनके पूर्वजों पर थोपा गया था और चूंकि वे अब तक ये खा रहे थे इसलिए उनकी पीढ़ियां भी मौजूद हैं। इसके अलावा उन्होंने बताया कि मराठवाड़ा के क्षेत्र में खाना-पीना, भोजन कैसा है और उस पर जैसा कि लोग मानते हैं, कोई भी मुस्लिम प्रभाव नहीं है। खाने पर मांसाहार और उसके प्रकार और उसमें भी भेदभाव पर उन्होंने चर्चा की। 

खाने-पीने से ही संंबंधित एक सत्र अगले दिन था जिसमें पुष्पेष पंत ने नेपाल की लेखिका रोहिणी राना ने नेपाली खाने-पीने व पाक विधि पर बात की। दूसरे दिन के सत्रों में ही एक स्वानंद किरकिरे और शेखर रजवानी का था, स्वानंद ने कई गाने उसमें सुनाए। इस उत्सव में कैलाश खेर और प्राजक्ता कोहली ने अपनी नई किताब पर चर्चा की थी। 

इसमें एक बहुत ख़ास बात थी कि एक गलियारे में 21 चित्र थे ऐसे लोगों के, जिनको वो बीमारी है जिन्हें विकलांग व्यक्तियों के अधिकार (आरपीडब्ल्यूडी) अधिनियम, 2016 के अंतर्गत रखा गया है। इन 21 चित्रों में 21 लोगों की कहानी है जो कि कलाकार भी हैं और अपने क्षेत्र में माहिर हैं। इसी गलियारे में लगे बाकी चित्रों के साथ इसे देखना प्रेरणादायी भी था। 

जयपुर लिटरेटर फेस्टिवल 2025 भीड़ के मामले भी थोड़ा कम लगा। बावजूद इसके सत्र सुनने वाले और उत्सव में आने वाले लोगों का उत्साह देखने लायक था। 

9 महीने पहले

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