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इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं : ओम प्रकाश आदित्य की हास्य कविता

गधा
                
                                                         
                            इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं
                                                                 
                            
जिधर देखता हूं, गधे ही गधे हैं

गधे हँस रहे, आदमी रो रहा है
हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है 

जवानी का आलम गधों के लिये है
ये रसिया, ये बालम गधों के लिये है

ये दिल्ली, ये पालम गधों के लिये है
ये संसार सालम गधों के लिये है
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3 वर्ष पहले

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