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मंगलेश डबराल: प्रेम करती स्त्री देखती है एक सपना रोज़

maglesh dabral famous hindi kavita prem karti stree dekhti hai ek sapna roz
                
                                                         
                            


प्रेम करती स्त्री देखती है
एक सपना रोज़
जागने पर सोचती है क्या था वह
निकालने बैठती है अर्थ

दिखती हैं उसे आमफ़हम चीज़ें
कोई रेतीली जगह
लगातार बहता नल
उसका घर बिखरा हुआ
देखती है कुछ है जो दिखलाई नहीं पड़ता
कई बार देखने के बाद

प्रेम करती स्त्री
यक़ीन नहीं करती किसी का
कंघा गिरा देती है
दर्पण में नहीं देखती ख़ुद को
सोचती है मैं ऐसे ही हूँ ठीक
उसकी सहेलियाँ एक-एक कर
उसे छोड़कर चली जाती हैं
धूप उसके पास आए बिना निकल जाती है
हवा उसके बाल बिखराए बिना बहती है
उसके खाए बिना हो जाता है खाना ख़त्म

प्रेम करती स्त्री
ठगी जाती है रोज़
उसे पता नहीं चलता बाहर क्या हो रहा है
कौन ठग रहा है कौन है खलनायक
पता नहीं चलता कहाँ से शुरू हुई कहानी

दुनिया को समझती है वह
गोद में बैठा हुआ बच्चा
निकल जाती है अकेली सड़क पर
देखती है कितना बड़ा फैला शहर
सोचती है मैं रह लूँगी यहाँ कहीं।

2 महीने पहले

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