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'फागुन' के महीने पर कवियों द्वारा कहे गए दोहे

'फागुन' के महीने पर कवियों द्वारा कहे गए दोहे....
                
                                                         
                            हिंदी में फागुन आखिरी महीना होता है, सुंदर, सुहावना और हुल्लड़ से भरा हुआ।  ऋतुराज बसंत जब अंगड़ाइयां लेने लगता है और लोगों पर होली का ख़ुमार छाने लगता है तब हर रचनाकार के मन में रचनाएं उमड़-घुमड़ के आकार लेने लगती हैं। फागुन में फसलें पकने लगती हैं, आमों में बौर आ जाता है, फूल खिलने लगते हैं, गांव-गली-मुहल्लों में नया उत्साह दिखने लगता है। पेश है 'फागुन' के महीने पर कवियों द्वारा कहे गए दोहे- 
                                                                 
                            

गोरी धूप कछार की हम सरसों के फूल
जब-जब होंगे सामने तब-तब होगी भूल।।
-कैलाश गौतम

दीपक वाली देहरी तारों वाली शाम
आओ लिख दूँ चंद्रमा आज तुम्हारे नाम।।
-कैलाश गौतम

ढीठ छोरियाँ तितलियाँ रोके राह बसंत
धरती सब क्यारी हुई अम्बर हुआ पतंग
-पूर्णिमा वर्मन आगे पढ़ें

3 वर्ष पहले

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