हिंदी में फागुन आखिरी महीना होता है, सुंदर, सुहावना और हुल्लड़ से भरा हुआ। ऋतुराज बसंत जब अंगड़ाइयां लेने लगता है और लोगों पर होली का ख़ुमार छाने लगता है तब हर रचनाकार के मन में रचनाएं उमड़-घुमड़ के आकार लेने लगती हैं। फागुन में फसलें पकने लगती हैं, आमों में बौर आ जाता है, फूल खिलने लगते हैं, गांव-गली-मुहल्लों में नया उत्साह दिखने लगता है। पेश है 'फागुन' के महीने पर कवियों द्वारा कहे गए दोहे-
गोरी धूप कछार की हम सरसों के फूल
जब-जब होंगे सामने तब-तब होगी भूल।।
-कैलाश गौतम
दीपक वाली देहरी तारों वाली शाम
आओ लिख दूँ चंद्रमा आज तुम्हारे नाम।।
-कैलाश गौतम
ढीठ छोरियाँ तितलियाँ रोके राह बसंत
धरती सब क्यारी हुई अम्बर हुआ पतंग
-पूर्णिमा वर्मन
हँसी चिकोटी गुदगुदी चितवन छुवन लगाव
सीधे-सादे प्यार के ये हैं मधुर पड़ाव।।
-कैलाश गौतम
फागुन आया खिल गए, टेसू और कनेर
गदराया यौवन कहे, प्रियतम मत कर देर।
-सुनील जोगी
साधो ऋतु वसंत की, महिमा बड़ी अनंत
होली में हुलसे फिरें, जिन्हें कहें सब संत।
-सुनील जोगी
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