खां साहब (उस्ताद नुसरत फतेह अली खान) के बारे में बहुत कुछ है, जो यादगार है। चाहे बात उनकी गायकी की हो या निजी जिंदगी की। मशहूर पाकिस्तानी सूफी गायक नुसरत फतेह अली खान का जन्म 1948 में पाकिस्तान के फैसलाबाद मेें हुआ था। बंटवारे से पहले उनका परिवार भारत के जालंधर में रहता था। नुसरत फ़तेह अली खान की आवाज़ सूफियों की आवाज़ कही जाती है। पेश हैं ऐसे शेर जिन्हें नुसरत साहब की आवाज़ मिली-
ज़ख़्म पे ज़ख़्म खा के जी अपने लहू के घूँट पी
आह न कर लबों को सी इश्क़ है दिल-लगी नहीं
- एहसान दानिश
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
- जिगर मुरादाबादी
अब तो हाथों से लकीरें भी मिटी जाती हैं
उस को खो कर तो मिरे पास रहा कुछ भी नहीं
- अख्तर शुमार
आप का ए'तिबार कौन करे
रोज़ का इंतिज़ार कौन करे
- दाग़ देहलवी
हम बुतों से जो प्यार करते हैं, नक्ल-ए- परवरदिगार करते हैं
इतनी कसमें न खाओ ख़बरा कर, जाओ हम एतबार करते हैं
उदासियां जो न लाते तो और क्या करते
न जश्न-ए-शोला मनाते तो और क्या करते
अंधेरा माँगने आया था रौशनी की भीक
हम अपना घर न जलाते तो और क्या करते
- नज़ीर बनारसी
ये मानता हूं कि मैं तुझ पा नहीं सकता
तेरा ख़याल मगर दिल से जा नहीं सकता
क्या हुआ गर उनके साथ है रक़ीब है
फूल के साथ ख़ार होता है
अब तो हाथों से लकीरें भी मिटी जाती हैं
उस को खो कर तो मिरे पास रहा कुछ भी नहीं
- अख्तर शुमार
आप का ए'तिबार कौन करे
रोज़ का इंतिज़ार कौन करे
- दाग़ देहलवी
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एक वर्ष पहले
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