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राजकपूर साहब की पहली फ़िल्म 'आग' का मशहूर गीत 'ज़िंदा हूँ...लिखने वाले शायर की शायरी

साहब की पहली फ़िल्म 'आग' का मशहूर गीत 'ज़िंदा हूँ...लिखने वाले शायर की शायरी
                
                                                         
                            नाकामियों के खौफ ने दीवाना कर दिया,
                                                                 
                            
मंजिल के सामने भी पहूँच के निराश हूँ।

ज़िंदा हूँ इस तरह कि ग़म-ए-ज़िंदगी नहीं 
जलता हुआ दिया हूँ मगर रौशनी नहीं। 

आता है जो तूफ़ाँ आने दे कश्ती का ख़ुदा ख़ुद हाफ़िज़ है 
मुमकिन है कि उठती लहरों में बहता हुआ साहिल आ जाए। 


फ़िल्म इंडस्ट्री के शोमैन कहे जाने वाले, गुज़रे ज़माने के महान कलाकार राजकपूर साहब की पहली फ़िल्म 'आग' का मशहूर गीत 'ज़िंदा हूँ इस तरह कि ग़म-ए-ज़िंदगी नहीं' से बहज़ाद लखनवी साहब ने शोहरत की दुनिया में क़दम रखे। इस शुरुआत के साथ वे हिंदी सिनेमा की ज़रूरत बन गए। 

अपने शायराना तहज़ीब को अपनी कलम से रंग देने वाले जनाब सरदार अहमद ख़ान यानी बहज़ाद लखनवी अपने ढंग के अलहदा शायर थे। बहज़ाद साहब की ग़ज़ल 'दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे' को जब मशहूर ग़ज़ल गायिका बेगम अख़्तर ने अपनी आवाज़ दी तो एक समय में ग़ज़ल प्रेमियों की ज़ुबान पर सिग्नेचर ट्यून की तरह चढ़ गई थी। आज भी लोग उसी शिद्दत से सुनते हैं इस ग़ज़ल को - 

"दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे 
वरना कहीं तक़दीर तमाशा न बना दे 

ऐ देखनेवालों मुझे हँस-हँस के न देखो 
तुमको भी मुहब्बत कहीँ मुझ-सा न बना दे 

मैं ढूँढ रहा हूँ मेरी वो शम्मा कहाँ है 
जो बज़्म की हर चीज़ को परवाना बना दे।" 

"न आंखों में आंसू न होंठों पे हाए
मगर एक मुद्दत हुई मुस्कुराए" 


भी फ़िल्म 'आग' के लिए बहज़ाद साहब ने लिखा, यह गीत भी बहुत हिट हुआ। 
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5 महीने पहले

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