हवायें बेझिझक चली हैं तेरे हुस्न के लिए,
बाहों को चूमती फिरी हैं तेरे हुस्न के लिए
कयी पतंगें जल गये जो दीपकों के इश्क में,
किसी ने मौत चुन लिया किसी के हुस्न के लिये
दुआ यही है छूटकर भी सब खुशी खुशी रहें,
बिना मिले ही तड़पती है जान हुस्न के लिये
ये ठीक है कि आसमां में रौशनी है चाँद से,
सितारे साथ चाहिए मगर वो हुस्न के लिये
विरासतें नहीं ये दिल कि खत्म ही न हो कभी,
है बेहिसाब जिंदगी की आस हुस्न के लिये
जहाँ गये खबर लिया नहीं किसी ने हाल का,
सुनी गयी है दास्तां तुम्हारे हुस्न के लिये
फिदा जो तुझपे चाहतें कई दिलों की है सनम,
किसी में है नही मगर वो बात हुस्न के लिये
-आर्यव्रत आनन्द 'शुभम'
- हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।
आपकी रचनात्मकता को अमर उजाला काव्य देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें
4 वर्ष पहले
कमेंट
कमेंट X