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फिर तेरी याद

                
                                                         
                            आज मुद्दत बाद फिर तेरी याद आई है
                                                                 
                            
तू कहीं आस पास है या बस तेरी याद आई है

मेरे होठ खुद ख़ामोश हो गए
जैसे ही प्याले की बर्फ होठों तक आई है

तेरे हर एक अंदाज़ में एक अलग सा तीखापन होता है
बात तेरे जुबा से निकली नहीं की दिल के पार निकल आईं है

मेरे यार ये कैसा नशा ये कैसा खुमार चढ़ता जा रहा है
मेरे साकी ये कोई शराब थी या तूने अपने हाथो से शबनम पिलाई है

मुझे लगने लग है अब तू मेरे साथ चलते चलते थकने लगा है
तू भले कुछ ना कहे पर सब कुछ बयां करती तेरी ये अंगड़ाई है

मुझे मालूम है ठंड का मौसम तुझे प्यारा है और तू मेरे घर आया है
तुझे भी मालूम है मेरे पास एक ही रजाई है

आग जला के मै बैठा रहा और तुझे निहारता रहा
तू सब कुछ भुला के तब मेरे आगोश में सो पाई है
ये सब हकीकत से परे है ये सब एक ख्वाब भर है
खुदा ये तेरी कैसी खुदाई है

तू मेरे ख्यालों में आया तो चांद बादलों में छुपने लगा
ना जाने ये कैसी रात फिर निकल आईं है
 
- हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है। आपकी रचनात्मकता को अमर उजाला काव्य देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करे
3 वर्ष पहले

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