कुछ बचा नहीं करने को मुकम्मल हयात हो गई
                                                                 
                            
                                                                 
                            
दिन आखिर गुज़र गया और जमीं पर रात हो गई
                                                                 
                            
                                                                 
                            
                                                                 
                            
                                                                 
                            
#बशर
                                                                
                
                
                 
                                
                                            
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