आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

दस्तक

                
                                                         
                            दस्तक पड़ने वाली है किसी की अपने शहर में,
                                                                 
                            
कुछ दिनों से शहर की हवा बदल सी गई है,
बड़े बड़े अधिकारी हरकत में आने लगे है,
शायद दंकापति को चिंता होने लगी है,
उनके अदम्य हौसले और साहस को देख।

जो इतनी ऊंचाइयों से पैदल चल कर,
पर्वतों नदियों को पीछे छोड़ ,
जो इतनी करीब को आए हो,
क्या तुम उन्हें नजरबंद कर उनके हौसले को तोड़ पाओगे?

कब कोई चारदीवारों में दिनकर को बांध पाया है,
उसके सुक्ष्म तिमिर को कब तक अंधेरो ने छुपाया है,
उस अदृशय दीपक को कितनों में बुझाओगे,
ये दीपक एक मसाल बन,
युवाओं को रह दिखाएगा।

जब भी हिंसा भड़की है ,
तब वो आकर खड़ा हुआ ,
वो दुबला सा काठी वाला,
हाथ में थामे लाठी वाला,
रूप बदलकर आएगा,
चेहरे पर मुस्कान लिए,
अहिंसा का हथियार लिए,
तुम्हे पराजित कर जाएगा।
- हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
एक घंटा पहले

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही

अब मिलेगी लेटेस्ट, ट्रेंडिंग और ब्रेकिंग न्यूज
आपके व्हाट्सएप पर