दस्तक पड़ने वाली है किसी की अपने शहर में,
कुछ दिनों से शहर की हवा बदल सी गई है,
बड़े बड़े अधिकारी हरकत में आने लगे है,
शायद दंकापति को चिंता होने लगी है,
उनके अदम्य हौसले और साहस को देख।
जो इतनी ऊंचाइयों से पैदल चल कर,
पर्वतों नदियों को पीछे छोड़ ,
जो इतनी करीब को आए हो,
क्या तुम उन्हें नजरबंद कर उनके हौसले को तोड़ पाओगे?
कब कोई चारदीवारों में दिनकर को बांध पाया है,
उसके सुक्ष्म तिमिर को कब तक अंधेरो ने छुपाया है,
उस अदृशय दीपक को कितनों में बुझाओगे,
ये दीपक एक मसाल बन,
युवाओं को रह दिखाएगा।
जब भी हिंसा भड़की है ,
तब वो आकर खड़ा हुआ ,
वो दुबला सा काठी वाला,
हाथ में थामे लाठी वाला,
रूप बदलकर आएगा,
चेहरे पर मुस्कान लिए,
अहिंसा का हथियार लिए,
तुम्हे पराजित कर जाएगा।
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