आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

बहज़ाद लखनवी: ऐ दिल की लगी चल यूँ ही सही, चलता तो हूँ उन की महफ़िल में

bahzad lakhnavi famous ghazal aye jazba e dil gar main chahun har cheez muqabil aa jaye
                
                                                         
                            


ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए
मंज़िल के लिए दो गाम चलूँ और सामने मंज़िल आ जाए

ऐ दिल की लगी चल यूँही सही चलता तो हूँ उन की महफ़िल में
उस वक़्त मुझे चौंका देना जब रंग पे महफ़िल आ जाए

ऐ रहबर-ए-कामिल चलने को तय्यार तो हूँ पर याद रहे
उस वक़्त मुझे भटका देना जब सामने मंज़िल आ जाए

हाँ याद मुझे तुम कर लेना आवाज़ मुझे तुम दे लेना
इस राह-ए-मोहब्बत में कोई दरपेश जो मुश्किल आ जाए

अब क्यूँ ढूँडूँ वो चश्म-ए-करम होने दे सितम बाला-ए-सितम
मैं चाहता हूँ ऐ जज़्बा-ए-ग़म मुश्किल पस-ए-मुश्किल आ जाए

इस जज़्बा-ए-दिल के बारे में इक मशवरा तुम से लेता हूँ
उस वक़्त मुझे क्या लाज़िम है जब तुझ पे मिरा दिल आ जाए

ऐ बर्क़-ए-तजल्ली कौंध ज़रा क्या मुझ को भी मूसा समझा है
मैं तूर नहीं जो जल जाऊँ जो चाहे मुक़ाबिल आ जाए

कश्ती को ख़ुदा पर छोड़ भी दे कश्ती का ख़ुदा ख़ुद हाफ़िज़ है
मुश्किल तो नहीं इन मौजों में बहता हुआ साहिल आ जाए
 

15 घंटे पहले

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही

अब मिलेगी लेटेस्ट, ट्रेंडिंग और ब्रेकिंग न्यूज
आपके व्हाट्सएप पर