मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी ऐसे शायर थे जो 12-13 वर्ष की आयु से ही शराब पीना शुरू कर दिए थे। धीरे-धीरे इसमें वृद्धि होती गई और यह आदत इस सीमा तक बढ़ गयी कि वे हर समय नशे में धुत रहने लगे।
कभी तो इतनी पी लिया करते थे कि उन्हें ख़ुद अपनी भी सुध नहीं रहती थी। असग़र गौंडवी कभी प्रत्यक्ष रूप से उन्हें शराब पीने से मना नहीं करते, बल्कि एक बार सलाह दी कि- उम्दा शराब पीओ, अच्छी संगत में पीओ और स्वयं खरीदकर पीओ।
यह असग़र की संगति का ही असर था कि ऐसी अवस्था में भी, जब वे अपने आपे में नहीं रहते और पग-पग पर दूसरे लोग उन्हें संभालते और सहारा देते, कोई भी शब्द उनके मुख से नहीं निकला जो मर्यादा की सीमा से बाहर हो और न ही कोई ऐसी हरकत की, जिस पर उन्हें बाद में पश्चाताप हो।
जिगर खुद पीने को कभी अच्छा नहीं माने थे लेकिन लत लग गई थी उन्हें तो छोड़ नहीं पा रहे थे। जबकि वे सदा मदिरापान से लज्जित रहते और छुटकारा पाने की कामना करते रहते। बार-बार इसका परित्याग करने का प्रयत्न करते लेकिन सफल नहीं हो पाते।
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15 घंटे पहले
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