इंसान के जीवन में उसका परिवार, रिश्ते और मित्र बेहद अहम होते हैं। हर कोई कभी ना कभी, किसी ना किसी दौर में ऐसी स्थिति में होता है कि वह अपने परिवार को, रिश्तों को या दोस्तों को याद कर रहा होता है। बदलते समय और जीवन की आपाधापी की वजह से हमारे रिश्तों में दूरी क्यों ही ना आई हो लेकिन हमारे त्योहार, संस्कृति और हमारे जीवन के मानवीय पहलू और एहसास हमें इन रिश्तों से हमेशा जोड़े रखती है।
ऐसा ही एक त्योहार है जिसने रेशम की डोर को प्यार की डोर में बदल दिया है। जिसने राखी को रक्षासूत्र बनने की ताकत दी है। रक्षाबंधन भाई-बहन के रिश्ते का दिन है। ये दिन उनके अटूट प्रेम का दिन है जो जन्म के साथ ही जुड़ जाता है। इस दिन भाई के हाथों में बांधी गई राखी धागों का ऐसा बंधन बन जाती है जो भाई-बहन के रिश्ते को और भी मजबूत कर देती है। साथ ही भाइयों को बहनों के प्रति अपने कर्तव्यों की याद भी दिलाती है।
रक्षाबंधन से जुड़े कई किस्से और बातें है जिन्हें याद करते हुए, मैं बचपन के दौर में लौट जाता हूं। यादों के पिटारे में उस वक़्त का एक गीत है जिसे सुनकर मैं अक्सर अपनी छोटी बहन को याद करने लगता हूं। उसके साथ बिताया हुआ वो पुराना वक़्त और वो हसीं दौर मेरे सामने एक मासूम से बच्चे की तरह हंसता हुआ आता है और मेरे चेहरे पर मुस्कान ला देता है।
हिंदी सिनेमा जगत में भाई-बहन के रिश्ते को हमेशा एक विशेष जगह मिली है। रूपहले परदे पर रक्षाबंधन या भाई-बहन के रिश्ते को कई फ़िल्मी गीतों में फ़िल्माया गया है। इनमें से कई गीत बेहद मशहूर भी हैं लेकिन 'हरे रामा हरे कृष्णा' फ़िल्म का गीत "फूलों का तारों का सबका कहना है" एक ऐसा गीत है जो सभी गीतों से बेहद अलग और प्रभावशाली है।
1971 में आई इस फ़िल्म को हिंदी सिनेमा जगत के सदाबहार और सबसे सफल अभिनेता देव आनंद ने ख़ुद निर्देशित किया था। उस समय पूरी दुनिया की ही तरह भारतीय कल्चर में हो रहे बदलाव और युवाओं को नशे की लत जैसे गंभीर कथावस्तु पर इस फ़िल्म को बनाया गया था। फ़िल्म का संगीत दिया था संगीतकार आर. डी. बर्मन ने और उन गीतों को काग़ज़ पर उतारने का कलात्मक काम आनंद बक्शी ने किया था।
इस गीत की सबसे ख़ास बात है गीत के बोल, फ़िल्म में इस गीत की जगह और गीत के दोनों भाग का फ़िल्म की कहानी के साथ जुड़ते हुए परदे पर आना। इसी वजह से ये गीत मेरे दिल के बेहद करीब है। इस गीत को फ़िल्म में दो अलग-अलग आवाज़ में रिकॉर्ड किया गया है।
गीत का पहला भाग भारत रत्न लता मंगेशकर ने गाया है जिसे बाल कलाकारों के साथ फ़िल्माया गया। लता जी की आवाज़ में ये गीत और उसके फ़िल्मांकन में भाई-बहन का प्रेम और उनके अभिनय से उभरी भावनाएं एकदम बारीक़ी के साथ मन में घर कर जाती हैं। गीत की एक पंक्ति "सारी उमर हमें संग रहना है" सुन के भावनाओं का झरना बह उठता है और आंखें भर आती हैं। इस पंक्ति के साथ एक बात को सोचते हुए कि एक माता-पिता के बच्चे होते हुए भी कैसे भाई-बहन सारी उम्र एक साथ रह नहीं पाते। दोनों को अलग होना ही पड़ता है और असल जीवन में इस बात का एहसास भी बहुत देर में तब होता है जब दोनों एक दूसरे से अलग हो जाते हैं।
फूलों का तारों का, सबका कहना है
एक हज़ारों में मेरी बहना है
सारी, उमर, हमें संग रहना है
ये न जाना दुनिया ने तू है क्यूं उदास,
तेरी प्यासी आंखों में प्यार की है प्यास,
आ मेरे पास आ, कह जो कहना है, एक हज़ारों
गीत के दूसरे भाग को आवाज़ दी है हिंदी संगीत जगत के ध्रुवतारे किशोर कुमार ने। उनकी आवाज़ में ये गीत और भी खिल उठता है। दूसरे भाग के फ़िल्मांकन में प्रशांत (देव साहब का निभाया किरदार) अपनी बहन जसबीर को बचपन की ही तरह गीत गाते हुए यह याद दिलाने की कोशिश करता है कि वो उसका भाई है। वह उसे नशे की लत से छुटकारा दिलाना चाहता है।
भाई-बहन के अनोखे से रिश्ते पर आधारित ये गीत एक भाई का अपनी छोटी बहन के प्रति प्रेम और कर्तव्य को दर्शाता है। ये गीत इस त्योहार, रक्षासूत्र के बंधन और रिश्ते को परिभाषित करता सबसे मुकम्मल गीत है। जिसे जितनी बार सुना जाए उतनी ही बार ये आंखों को नम करता है और इस रिश्ते की ताकत का एहसास कराता है।
फूलों का तारों का सबका कहना है
एक हज़ारों में मेरी बहना है
सारी उम्र हमें संग रहना है
फूलों का तारों का सबका कहना है
जब से मेरी आंखों से हो गई तू दूर
तब से सारे जीवन के सपने हैं चूर
आंखों में नींद ना, मन में चैना है,
एक हज़ारों में मेरी बहना है
सारी उम्र हमें संग रहना है
फूलों का तारों का सबका कहना है
देखो हम तुम दोनो हैं एक डाली के फूल
मैं न भूला तू कैसे मुझको गई भूल
आ मेरे पास आ, कह जो कहना है
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