नौशाद साहब एक बड़े संगीतकार होने के साथ जिंदादिल और हमेशा खुश रहने वाले इंसान भी थे। नौशाद साहब का जन्म 25 दिसंबर 1919 को लखनऊ में मुंशी वाहिद अली के घर में हुआ था। वह 17 साल की उम्र में ही मुंबई जैसे महानगर की ओर अपने कदम बढ़ा दिए थे। उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को चौधरी जिया इमाम ने 'नौशाद जर्रा जो आफताब बना' किताब में बड़ी संजीदगी से उतारा है। नौशाद साहब की संगीत प्रतिभा के अलावा यह पुस्तक उनके व्यक्तित्व का विस्तार से वर्णन करती है। इसी किताब के कुछ संस्करण हम अपने पाठकों के लिए 'मुड़ मुड़ के देखता हूं' सेक्शन के तहत पेश कर रहे हैं।
नौशाद साहब जब रात आती है तो मुझे सुबह का इंतजार रहता है...
किताब के अनुसार फिल्म पाकीज़ा पूरी होने के बाद एक दिन मीना कुमारी नौशाद साहब के घर गईं और उनके काम की तारीफ़ की। उन दिनों मीना कुमारी की तबीयत ख़राब रहती थी। उन्होंने नौशाद साहब से कहा, " नौशाद साहब जब रात आती है तो मुझे सुबह का इंतजार रहता है और जब दिन आता है तो रात आने का खौफ़।" इस बात पर नौशाद ने मीना कुमारी को एक शेर लिखकर दिया था-
देख सूरज उफ़क़ में डूब गया, धूप एक सिर से तेरे और ढली
एक दिन उलझनों का और आ गया, एक कड़ी ज़िंदगी की और कटी।।
दुनिया से मौसीक़ी का पयंबर चला गया...
अपने पुराने अज़ीज़ दोस्त मोहम्मद रफ़ी के इंतेकाल की ख़बर जब नौशाद को 31 जुलाई 1980 को मिली तो उन्होंने अपने जज़्बात का इज़हार कुछ इस तरह किया-
कहता है दिल कि दिल गया, दिलबर चला गया
साहिल पुकारता है, समंदर चला गया।।
लेकिन जो बात सच है, वह कहता नहीं कोई
दुनिया से मौसीक़ी का पयंबर चला गया।।
दुनिया में कोई दूसरा सहगल नहीं आया...
महान गायक के.एल. सहगल साहब के लिए उनकी पंक्तियां इस तरह हैं-
ऐसा कोई फ़नकार मुकम्मल नहीं आया
नग़मों का बरसता हुआ बादल नहीं आया।।
संगीत के माहिर तो बहुत आए हैं लेकिन
दुनिया में कोई दूसरा सहगल नहीं आया।।
संगीत तो उनकी रूह थी लेकिन नौशाद के अंदर एक शायर भी बसता था...
संगीत तो उनकी रूह थी लेकिन नौशाद के अंदर एक शायर भी बसता था। वो एक बेहतरीन शायर थे, एक से एक ख़ूबसूरत शेर उन्होंने अपने जीवन में बयां किए हैं, उनका दीवान 'आठवां सुर' नाम से प्रकाशित भी हो चुका है। उन्होंने कुछ नज़्मों के ज़रिए लखनऊ से अपनी नाराज़गी भी ज़ाहिर की है-
दिल मुझसे कह रहा है, नौशाद चल यहां से
यह अजनबी फ़िजा है, बस निकल यहां से।।
तू जिसको ढूंढ़ता है, यह वह नगर नहीं है
यह शहर वह है जिसमें तेरा गुज़र नहीं है
अब सिर्फ लखनऊ के अफ़साने रह गए हैं
अपना नहीं है कोई, बेगाने रह गए हैं।।
नौशाद साहब ने कई ख़ूबसूरत ग़ज़लें भी लिखी...
नौशाद साहब ने कई ख़ूबसूरत ग़ज़लें भी लिखी। गजलों में मोहब्बत का तरन्नुम एक लंबे सुकून के साथ रूहानियत को बयां कर रहा है। कुछ गजलें ऐसी हैं।
अभी साजे दिल में तराने बहुत हैं
अभी जिंदगी के बहाने बहुत हैं।।
ये दुनिया हक़ीकत की कायल नहीं है
फ़साने सुनाओ फ़साने बहुत हैं।।
तेरे दर के बाहर भी दुनिया पड़ी है
वहीं जा रहेंगे ठिकाने बहुत हैं।।
मेरा एक नशेमन जला भी तो क्या है
जमाने में अभी आशियाने बहुत हैं।।
नए गीत पैदा हुए हैं उन्हीं से
जो पुरसोज़ नगमें पुराने बहुत हैं।।
नौशाद 'बैजू बावरा' के लिए बेस्ट संगीतकार चुने गए
नौशाद साहब पहले भारतीय संगीतकार थे जो फिल्म 'आन' के बैकग्राउंड म्यूजिक के सिलसिले में विदेश (लंदन) गए थे। इसी फिल्म के लिए नौशाद साहब ने मौसीक़ी की दुनिया में पहली बार सौ वाद्य यंत्रों के ऑर्केस्ट्रा का इस्तेमाल कर पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया था। साउंड मिक्सिंग भी हमारी फिल्म इंडस्ट्री को नौशाद की ही देन है।
फिल्मी पत्रिका फिल्मफेयर ने सन् 1953 में फ़िल्मफेयर अवार्ड की शुरुआत की और उसी साल नौशाद साहब को फिल्म 'बैजू बावरा' के लिए बेस्ट संगीतकार का फ़िल्मफेयर अवार्ड मिला। 1982 में 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' पाने वाले वे पहले शुद्ध कंपोजर बने। इससे पहले यह पुरस्कार किसी कंपोजर को नहीं मिला था। 1992 में उन्हें 'पद्म भूषण' सम्मान से भी नवाजा गया।
तू गंगा की मौज...ओ गाड़ी वाले... आज भी श्रोताओं के पसंदीदा गीत हैं...
नौशाद साहब ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं को भी अपने संगीत से सजाया, जो कि एक एल्बम के रूप में रिलीज़ हुआ था। दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा..., नैन लड़ जइहैं..., मोहे पनघट पे नंदलाल... जैसे एक से एक सुरीले गीत देने वाले संगीतकार नौशाद ने अपने लंबे फिल्मी करियर में हमेशा कुछ न कुछ नया देने का प्रयास किया।
'बैजू बावरा' का तू गंगा की मौज... और 'मदर इंडिया' का ओ गाड़ी वाले... आज भी श्रोताओं के पसंदीदा गीत हैं।
साभार- नौशाद जर्रा जो आफताब बना
लेखक- चौधरी जिया इमाम
पेंगुइन बुक्स
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नौशाद साहब जब रात आती है तो मुझे सुबह का इंतजार रहता है...
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