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जव्वाद शैख़: किस किस से हाथ खींचिए क्या क्या न कीजिए

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दिल को मआल-ए-'इश्क़ से बेगाना कीजिए
परवाना कह रहा है कि पर्वा न कीजिए

हर ख़्वाब ना-गुज़ीर है हर काम फ़र्ज़ है
किस किस से हाथ खींचिए क्या क्या न कीजिए

वो बात जो अभी अभी मैं ने नहीं सुनी
वो बात हो सके तो दुबारा न कीजिए

मुख़्लिस हैं और वो भी मुझ ऐसे हक़ीर से
अपने ही साथ आप ये धोका न कीजिए

क्या सच में आप जी नहीं सकते मिरे बग़ैर
तो फिर कोई जवाज़ मुहय्या न कीजिए

इतनी भी मेरी दरगुज़री मुस्तक़िल नहीं
कितनी दफ़'अ कहा है कि ऐसा न कीजिए

हाँ शुक्र तो ज़रूर बजा लाइए हुज़ूर
लेकिन हमारे ज़ब्त पे तकिया न कीजिए

अच्छा है इन्फ़िराद भी अपनी जगह मगर
'जव्वाद' कोई काम तो उल्टा न कीजिए 
 

एक दिन पहले

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