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राही डूमरचीर की कविता- यूँ ही नहीं गँवाया, शहरों ने आँखों का पानी

कविता
                
                                                         
                            दरमियाँ एक तालाब था
                                                                 
                            
जो नदी-सा बहता था
अब कंक्रीट के महल हैं दरमियाँ
जो पानी की क़ब्र पर उगे हैं

यूँ ही नहीं गँवाया
शहरों ने आँखों का पानी
चुराई हुई मिट्टी डालकर
सुखाया गया है
इंतज़ार किया है शिद्दत से
शहर ने

तब से सिलसिले हैं
प्यास के
तरसता है शहर पानी के लिए
दर-ब-दर भटकते हैं शहरी
आँखों में पानी की ख़्वाहिश लिए।

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17 घंटे पहले

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