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अल्लामा इक़बाल: कश्मीरी पंडितों के परिवार से आया शायर जिसने बंटवारे की आवाज़ उठाई

allama iqbal a poet who comes from the kashmiri pandit family gave two nation theory
                
                                                         
                            

जम्मू के सुचेतगढ़ बॉर्डर पर भारत और पाकिस्तान दोनों ओर ही अल्लामा इक़बाल की लिखी पंक्तियां हैं। भारत की ओर लिखा है तराना-ए-हिन्द (सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा, हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसिताँ हमारा) और पाकिस्तान की ओर लिखा है तराना-ए-मिल्ली (मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहाँ हमारा)। भारत-पाकिस्तान का बंटवारा सन् 1947 में हुआ था लेकिन अल्लामा इक़बाल ने 1930 में ही इंडियन मुस्लिम लीग के 21वें सत्र में पंजाब, उत्तर-पश्चिम फ्रंटियर प्रांत (आज का ख़ैबर पख़्तूनख़्वा), सिंध और बलूचिस्तान को मिलाकर एक अलग राष्ट्र बनाने की बात कर दी थी। इसे टू-नेशन थ्योरी कहा जाता है - द्विराष्ट्रीय सिद्धांत।  

ये बात मुस्लिम लीग के मुहम्मद अली जिन्ना को जंच गई और धर्म के लिए एक अलग देश के सपने भी सजने लगे। लेकिन 1938 को अल्लामा इक़बाल की मृत्यु हो गई, इस सपने को साकार देखने से पहले ही। भारत और पाकिस्तान 1947 में अलग हुए थे। इक़बाल ने टू नेशन थ्योरी दी, इसमें भी कई मत हैं। कुछ लोग मानते हैं कि अल्लमा इक़बाल ने दो देश बनाने की बात नहीं की थी बल्कि एक ही देश में अलग स्वायत्ता की बात की थी। जबकि कुछ लोगों का मत ये भी है कि उन्होंने अलग देश की ही बात की थी जिस सपने को फिर जिन्ना ने आगे बढ़ाया। हालांकि 1937 में जिन्ना के ब्रिटेन जाने के बाद इक़बाल ने ही उन्हें मुस्लिम लीग के नेतृत्व और अलग देश की आवाज़ उठाने के लिए वापस बुलाया था। 

लेकिन यह भी एक कमाल की ही बात है कि इन्हीं अल्लामा इक़बाल ने जब राम को इमाम-ए-हिन्द यानी हिन्दुस्तान का पथ-प्रदर्शक कहा था तो उन्हें धार्मिक कट्टरपंथियों ने घेर लिया था। इक़बाल का जन्म 9 नवम्बर 1877 को भारत में हुआ था। उनके दादाजी कश्मीरी पंडित थे जो बाद में पंजाब से सियालकोट चले गए थे, वहीं उन्होंने इस्लाम अपना लिया। इक़बाल ने कई ऐसे शेर लिखे जो लंबे समय तक याद किए जाते हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद जहां भारत के लोग गा रहे थे कि सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा, वहीं पाकिस्तान का एयरमार्शल ऑरंगज़ेब भी उनका लिखा तराना गुनगुना रहा था। इक़बाल की एक नात - लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी, तो बहुत ही प्रसिद्ध है। 

लेकिन इक़बाल के इस कवित्व के आगे उनकी टू-नेशन थ्योरी दर्द को बार-बार उकेरती है। विशेष तौर पर उन लोगों के लिए जिन्होंने उस विभाजन की तकलीफ़ झेली थी। जब पाकिस्तान की ओर से लोगों को काट-काटकर हिंदुस्तान भेजा जा रहा था। फिर ये ख़ून-ख़राबा रुक कहां गया। सीज़फ़ायर के बीत लगातार युद्ध होता ही रहता है। 

इतिहास और वर्तमान की इस स्थिति के बीच आप अल्लामा इक़बाल को कैसे याद करते हैं? एक शायर, विचारक या कुछ और? 

5 महीने पहले

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