आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

गुलज़ार: हर्फ़ इस शायर का हाथ पकड़ कर काग़ज़ पर उतरते हैं

famous lyricist poet shayar gulzar turns 90 years
                
                                                         
                            
सफ़ेद कुर्ता और पजामा, सर्दियों में जिस पर भूरे या क्रीम रंग की शॉल होती है, पहने एक पतली देह का व्यक्ति अपनी भारी आवाज़ में कभी अपनी नज़्म पढ़ता है तो कभी ग़ालिब के शेर। आज 90 बरस के हुए शख़्स ने सिनेमा को वो सब कुछ दिया है, जिसके लिए एक कलाकार को बरसों क्या सदियों तक याद किया जाता है। चाहें वो ग़ालिब की सीरीज़ हो या तहरीर में प्रेमचंद की कहानियां और गीत तो इतने कि कोई दस बेहतरीन गानों की सूची बनाए और गुलज़ार छूट जाएं, ऐसा नहीं हो सकता। उन्होंने अपनी उस भूरी शॉल की तरह ही अपने गीतों को भी अलंकार और मेटाफ़ोर का जामा पहनाया है। 

फिर, अपने शब्दों को बिंब का जामा पहनाने वाले गुलज़ार को लोग नए शायरों के लिए किसी उपमा की तरह प्रयोग करते हैं। गुलज़ार फ़िल्मी लेखन का माइलस्टोन हैं। हर नया लिखने वाला गुलज़ार की तरह लिखना चाहता है, फ़िल्में बनाना चाहता है, सोचना चाहता है, बल्कि वैसी ही नज़्में भी पढ़ना चाहता है। गुलज़ार ने अमृता प्रीतम की कई नज़्में अपनी आवाज़ में पढ़ी हैं। वही अमृता जिन्होंने गुलज़ार के लिए कहा था कि - 

"गुलज़ार एक बहुत प्यारे शायर हैं, जो अक्षरों के अंतराल में बसी हुई ख़ामोशी की अज़मत को जानते हैं... उन्होंने इसे इतना पहचाना है कि उसकी बात अक्षरों में ढालते हुए उन्होंने उस ख़ामोशी की अज़मत रख ली है, जो एहसास में उतरना जानती है पर होटों पर आना नहीं जानती।" 

गुलज़ार ने ख़ामोशी को शब्द दिए हैं, वक़्त के बहते पानी पर निशान छोड़ा है, हवाओं में हाथ घुमाकर कल्पनाएं बुनी हैं और अपनी मेज़ से लाखों-करोड़ों लोगों के दिल तक उसे पहुंचाया है। उस कोने तक जहां वे ख़ुद ख़ामोशी के साथ बैठकर अपने आप को महसूस कर सकें। गुलज़ार की कल्पनाशीलता वाकई अलग और कमाल है। वो यार मिसाल-ए-ओस चले कि माशूक की चाल को इससे सुंदर और क्या कहा जा सकेगा, फिर पानी पानी रे खारे पानी रे नैनो में भर जा नींदें खाली कर जा, मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है, यारा सीली-सीली बिरहा की रात का जलना, कितने गीत गिनवाए जा सकते हैं गुलज़ार की प्रशंसा में कि शब्द ख़त्म हो जाएंगे लेकिन गीत नहीं। 

गुलज़ार पंजाबी हैं लेकिन बांग्ला से प्रेम करते हैं, उर्दू के लिए सम्मान मिले हैं, हिंदी सिनेमा के लिए गीत लिखते हैं - कुल मिलाकर एक भाषाप्रेमी और एक लेखक को जैसे होना चाहिए, वह उसका मानवीय स्कैच हैं। 

कितना अजीब है न कि कोई किसी लेखक की तारीफ़ के लिए कुछ शब्द कहे, उस लेखक के लिए जो अपने शब्दों से ही लोगों का दिल जीत लेता है। गुलज़ार साहब का जन्मदिन है, शुभकामना के लिए शब्द ख़ाली हो चुके हैं। बस एक आशा कि उनके पास से और ऐसे तमाम गीत निकलेंगे जिन पर मुग्ध होकर कोई आने वाली सदी का गुलज़ार बनना चाहेगा। 

एक वर्ष पहले

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही

अब मिलेगी लेटेस्ट, ट्रेंडिंग और ब्रेकिंग न्यूज
आपके व्हाट्सएप पर