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Hastimal Hasti: पहले प्यार की ख़ुश्बू वाला ख़त लिखने वाला शायर

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मंगलवार सुबह देर से आँख खुली। आदतन फ़ोन के नोटिफिकेशन देखे, फेसबुक खोला तो किसी का पोस्ट दिखा कि हस्तीमल हस्ती नहीं रहे। मैं 12 साल पुराने उस समय में पहुंच गई थी जब किसी ने एक ग़ज़ल भेजते हुए कहा था कि सुनो! इससे बेहतर और कुछ नहीं कहा गया है। जगजीत सिंह की आवाज़ थी और ग़ज़ल शुरु हुई

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है 

पूरी ग़ज़ल सुनी, पहले प्यार में डूबे-खोए हुए जिसमें न अपना होश और ना ही किसी और बात का। ये भी ठीक ही बात है कि पहला ख़त लिखने में वक़्त लगता है कि कितनी तरह की ज़हनी गिरहों को खोलकर ही कोई पहला साहस करता है। फिर मैंने जाना कि ग़ज़ल हस्तीमल हस्ती साहब ने लिखी है। पहली दफ़ा उनका नाम सुना था। जाना कि वे राजस्थान के राजसमंद के हैं। मैं भी तो राजस्थान में थी, भले राजस्थानी नहीं हूं। हस्तीमल हस्ती से अपनापन महसूस हुआ। यूं भी कोई मन की बात कह दे, तो उससे नैसर्गिक ही एक निकटता महसूस होती है। इसी क्रम में जाना कि उनकी एक किताब भी, इसी नाम से लिखी गई है। 

फिर क्या! ग़ज़ल चलती रही, वो भी लूप मे। भावनाओं का ज्वार भी चढ़ता-उतरता रहा कि फिर मैसेज आया कि दूसरे शेर को अच्छे से सुनना। शेर था कि 

जिस्म की बात नहीं थी उन के दिल तक जाना था
लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है


इस तरह के शेर सुनकर मन किसी और जगह जाता है, जहां कुछ नहीं होता सिवा उन भावनाओंं के जिन्हें किसी विशेषण का कोई जामा नही पहनाया जा सकता। हस्तीमल हस्ती के जीवन में भी ये ग़ज़ल बहुत मायने रखती है और उस पर ये शेर विशेष। हस्तीमल हस्ती दुकानदार थे, दुकान के काम से समय निकालकर अपना लेखन करते थे। किसी ख़ास ग़ज़ल को कहने की कोशिश में थे, मतला यानी ग़ज़ल का पहला शेर लिख दिया था। दूसरा लिखा तो ख़ुद भी उत्साह से भर गए। ऐसा अक्सर कलाकारों के साथ होता है, जहां वे ख़ुद इस संतोष से भरते हैं कि अपनी कला के साथ न्याय किया। 

ये ग़ज़ल उनके समकालीन कवि के ज़रिये सुदर्शन फ़ाकिर तक पहुंची। फ़ाकिर की ग़ज़लों के जगजीत की आवाज़ मिल ही रही थी, जब जगजीत साहब तक ये ग़ज़ल पहुंची तो उन्हें बहुत पसंद आई। उन्होंने इसे अपने एल्बम में छठें नंबर पर रखा। लेकिन जब बात मन से निकले और मन तक पहुंचे तो ये नंबर कहां मायने रखते हैं। हस्तीमल हस्ती की ये ग़ज़ल उनकी पहचान बन गई। जैसे हर कलाकार के साथ उसका एक काम सदा के लिए चस्पा हो जाता है, ये ग़ज़ल ठीक वही है। 

प्रेम से भरे मन के लिए ये इतनी पूरी है कि इसके आगे बढ़ने में ही एक अरसा बीत सकता है। 

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
नए परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है

जिस्म की बात नहीं थी उन के दिल तक जाना था
लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है

गाँठ अगर लग जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है

हम ने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँढ़ लिया लेकिन
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है


इस ग़ज़ल के बाद ही हस्तीमल हस्ती ने अदब की दुनिया में दस्तक दी। ग़ज़लों के इतर भी लेख भी लिखे, महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें सम्मानित भी किया। लंबे अरसे तक युगीन काव्य नाम की पत्रिका का संपादन भी किया। 

ऐसा नहीं है कि उनकी लिखी और ग़ज़लें पसंद नहीं हैं। जब वे कहते हैं कि 
चिराग़ हो के न हो दिल जला के रखते हैं
हम आँधियों में भी तेवर बला के रखते हैं

या 
सबकी सुनना, अपनी करना
प्रेम नगर से जब भी गुज़रना

अनगिन बूँदों में कुछ को ही
आता है फूलों पे ठहरना

या फिर
 हर कोई कह रहा है दीवाना मुझे
देर से समझेगा ये ज़माना मुझे

तब भी ये शायर अज़ीज़ ही रहते हैं लेकिन पहले प्यार की खु़श्बू जिसमें वो तो मिट्टी ही अलग होती है। फिर ये तो ग़ज़ल है जिसका हर एक शेर लाजवाब है। 

एक वर्ष पहले

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