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Khumar Barabankvi Shayari: ख़ुमार का नाम अगर सुरूर होता तो

                
                                                         
                            न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है 
                                                                 
                            
दिया जल रहा है हवा चल रही है 

सुकूँ ही सुकूँ है ख़ुशी ही ख़ुशी है 
तिरा ग़म सलामत मुझे क्या कमी है 

खटक गुदगुदी का मज़ा दे रही है 
जिसे इश्क़ कहते हैं शायद यही है 


उर्दू शायरी के फ़लक पर सितारें की तरह चमकने वाले शायर 

जन्म 15 सितंबर, 1919 को 

ताल्लुक- बाराबंकी से 

असल नाम-  मुहम्मद हैदर खान

लेकिन शायरी की दुनिया में ख़ुमार बाराबंकवी के नाम से जाने गए। 

उत्तर प्रदेश की राजधानी से पूरब की तरफ़ 23 किलोमीटर दूर शहर बाराबंकी स्थित है। इसकी ख़ास बोली तो किसी क़दर अवधी से मिलती जुलती है लेकिन शिक्षित वर्ग और संभ्रांत लखनऊ की ज़बान बोलते हैं।  क़रार बाराबंकवी भी अच्छे शायर थे जिनके कलाम को लखनऊ के अहल-ए-ज़बान भी पसंद करते थे।  उन्हीं के एक शागिर्द मुहम्मद हैदर ख़ां यानी ख़ुमार बाराबंकवी थे। उर्दू ग़ज़ल की विरासत लाखों शायरों में सदियों से तक़सीम होती आई है लेकिन बहुत कम ऐसे शायर गुज़रे हैं जिनकी ज़बान से शब्दों के मोती बन-बन कर बिखरे हैं। ख़ुमार ऐसे शायर थे- मुशायरों में उनका तरन्नुम में ग़ज़ल पढ़ना सुनने वालों को बहुत भाता था। ख़ुमार जिस भी महफिल में होते वह उनके नाम हो जाती। 

वही फिर मुझे याद आने लगे हैं 
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं 

इसी ग़ज़ल का शेर है कि- 

हटाए थे जो राह से दोस्तों की 
वो पत्थर मिरे घर में आने लगे हैं 

ये कहना था उन से मोहब्बत है मुझ को 
ये कहने में मुझ को ज़माने लगे हैं 

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4 महीने पहले

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