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तुलसी ने अपने कवि के स्वाभिमान से कोई समझौता नहीं किया, हर प्रलोभन को ठुकराया, चुनौतियां स्वीकार की

साहित्य
                
                                                         
                            सत्य और न्याय समयबद्ध अवधारणाएं हैं, इनकी शास्वतता परिवर्तन में निहित है। प्रवृत्तियां बदलती रहती हैं लेकिन स्वभाव की स्वाभाविकता जल्दी नहीं बदलती। विचार प्रवृत्तियों के प्राण होते हैं, गतिशीलता ही इनका जीवन है। इसी संदर्भ में विचारों की प्रवाहमान धारा विचारधारा कहलाती है। निष्कर्ष यह कि विचारधारा साध्य नहीं साधन है।
                                                                 
                            

विचारों के अभाव में कविता की कल्पना असंभव है लेकिन विचारों के विमर्श को कविता कदापि नहीं कहा जा सकता। जब तक कोई रचना विचारों से ऊपर नहीं उठ जाती तब तक उसे कविता का नाम नहीं दिया जा सकता। कविता की सैकड़ों श्रेष्ठ परिभाषाओं से यही बात ध्वनित होती है।

विचार प्रवृत्तियों की सीमा से बद्ध हैं और प्रवृत्तियां समय की सबसे ताकतवर अवधारणाओं से। जब तक मनुष्य का जीवन इस धरा पर संभव है या मनुष्य की केंद्रीय सत्ता स्वभाव (स्थाई भाव) में कोई परिवर्तन नहीं होता तब तक कविता का जीवन बना रहेगा। कविता के कालजयी कहे जाने का यह मुकम्मल कारण है। 

बड़ा कवि प्रवृत्तियों का कृतिदास नहीं होता। उसका कृतित्व विचारों से सतत ऊपर उठ जाने में निहित है। वह अपनी स्वाभाविक वैश्विकता से प्रवृत्तियों को चुनौती देता है, वह विचारों को छोड़ता नहीं, विचारधाराओं को सीख दे जाता है।  आगे पढ़ें

करुणा तुलसी के समस्त काव्य की केंद्रीय सत्ता है

2 वर्ष पहले

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