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शिव कुमार बटालवी: शिव पर वही लिख सकता है जिसके भीतर प्रेम हो, बिछोह हो

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शिव कुमार बटालवी बीते कुछ सालों में सोशल मीडिया पर ख़ासे लोकप्रिय हुए हैं। जिस ज़िंदगी की फ़ैटेसी को कोई युवा शायर अपनी कल्पनाओं में जीता है उसे शिव ने वास्तव में जीया था जैसे किसी फ़िल्म का कोई किरदार हो। उनके साथ जुड़े वे तमाम वाक़ये भी कुछ इस तरह के ही थे। किसी से ख़ूब प्रेम होने उस प्रेम में कविताएं लिखना, फिर उसका बिछोह और उस पर ख़ूब शायरी लिखना, शराब में डूबना और बहुत कम उम्र में दुनिया को छोड़ जाना। लेकिन उन्होंने इतनी कम उम्र में ही दुनिया को इतना कुछ दे दिया कि साहित्य वाले आज तक उनके अनुवाद कर रहे हैं और बाक़ी उनके लिख गीत सुन रहे हैं। शिव को जानने वाले बताते हैं कि वे अपनी रचनाओं के बारे में कहते थे कि आने वाले और 500 सालों में भी उनके लिखे का अनुवाद करना बहुत मुश्किल है, बात सटीक है। जो अनुवाद मिलते हैं वो वैसा रस नहीं देते जैसा मूल कविताओं में है। उनकी कुछ कविताओं में प्रयोग शब्दों की जानकारी को लेकर मैंने कई लोगों से बात की, ख़ास तौर पर वे जो ख़ुद भी पंजाबी में कविताएं लिखते हैं लेकिन शिव के प्रयोग किए हुए लोक के वे शब्द अब विस्मृत हो चले हैं, उनके अर्थ ढूंढ़ना बहुत मुश्किल है।

शिव पर बहुत कम जानकारी उपलब्ध है, कितनी बार लोग उनकी लिखी किसी किताब को हिंदी में चाहते हैं, कितने ही मैसेज इस संबंध में मुझे मिले लेकिन हर बार एक ही जवाब कि उनकी लिप्यांतरण तो हुआ है लेकिन भाषांतरण नहीं, किताब के तौर पर तो नहीं, कुछ प्रशंसकों ने ज़रूर अपनी वॉल और पोस्ट के ज़रिये उनके एक-दो अनुवाद पोस्ट किए हैं। गिनती में उनके कुछ वीडियो हैं, कुछ उनकी आवाज़ में गाए गीत, एक पूरा कविता संग्रह और लूणा के प्रदर्शन जिसके लिए उन्हें सबसे कम उम्र में साहित्य अकादमी भी मिला था। इसी साहित्य अकादमी से सम्मानित लेखक का उनके ही एक समकालीन ने कॉलर पकड़ लिया था कि वे प्रेम कविता न लिखकर समाज को लिखें। पर शायर मन तो शायर मन वो क़लर क्या गला पकड़ने से भी वश में नहीं आ सकता। फिर जिसके भीतर प्रेम है वो यूं भी समाज का दुश्मन तो नहीं हो सकता। बल्कि उसके लिखे में भीगकर तो उसके पढ़ने वाले विभोर ही होंगे।

मैं अक्सर शिव पर लिखे लेख पढ़ती हूं कि कहीं कुछ नया मिलेगा, उनके परिवार से भी बात हुई। पर एक लेख और हर बात उन्हीं कुछ चुनिंदा बातों के इर्द-गिर्द घूमती रही। 36 साल में दुनिया को अलविदा कहने वाले शिव के कितने संस्मरण होंगे, कितनी बातें, कितनी यादें। बाक़ी उनकी लिखा, पढ़ा, कहा उनसे ईर्ष्या रखने वालों ने हटवा दिया। कोई ख़ूबसूरत दिखने वाला, सुंदर लिखने वाला और सुरीला गाने वाला, फिर कम उम्र में ख़्याति पा रहा था, दुनियादार कहां बर्दाश्त कर पाते। उनकी आवाज़ को चाहने वालों ने भी उनका बुरा ही किया, उन्हें शराब पिलाने को कहते और शायरी सुनते। मन का सहज-सरल इसे कहां समझता, लोग ज़िद करते और शिव अपनी कविताएं गाकर सुनाते। हर महफ़िल की जान, फ़िल्म वाले कितनी बार बटाले आकर उनके घर रुकते, गीत सुनते, चर्चाएं करते। उनके लिखे गीत जब फ़िल्मों में आए तो ख़ासे मशहूर हुए।

लेकिन किसी भी लिखने वाले के लिए बहुत मुश्किल है कि उनकी रचनाएं लोक में घुले-मिलें। लोक इतनी आसानी से किसी को भी नहीं अपनाता, उसके लिए भाषा-समाज-सहतजा-शब्द और फिर जो भाव चाहिए उसका सामांजस्य मुश्किल है लेकिन शिव को लोक ने अपनाया। उनका लिखा फ़िल्मों से पहले लोगों की ज़ुबां तक चढ़ गया। वे उन विरले लिखने वालों में से हैं। शिव पर आलोचना, विवेचना आदि की दृष्टि से कुछ नहीं लिखा जा सकता। शिव पर वही लिख सकता है जिसके भीतर प्रेम हो, बिछोह हो जो समझ सके कि दुनिया और मन में कितने गज भर की दूरी होती है। जो भले जवानी में न मरे लेकिन फूल या तारा बनने की चाह रखता है। जो फूल सा कोमल हो और तारे सा अकेला पर चमकदार, ढूंढ़ो कोई ऐसा और कहो कि शिव पर कुछ कह दे। 

6 महीने पहले

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