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विनोद कुमार शुक्ल: जैसे हिंदी के दिन बहुरे

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हर कथा के अंत में सार बताते हुए पंडित बताते हैं कि जैसे उनके दिन बहुरे वैसे सबके दिन फिरें। ये वाक्य इन दिनों हिंदी साहित्य समाज के लिए कहा जा सकता है जहां वरिष्ठ लेखक विनोद कुमार शुक्ल को मिली 30 लाख की रॉयल्टी इन दिनों चर्चा में है, वो भी 6 महीने की रॉयल्टी। इसकी ख़बर तब फैली जब हिन्द युग्म प्रकाशन के रायपुर में हुए वार्षिकोत्सव में कवि को सांकेतिक चेक भेंट किया गया, प्रकाशन ने इसके साथ ही पूरा आंकड़ा भी लोगों के सामने पेश किया। हमेशा की तरह हिंदी का साहित्य समाज भी दो हिस्सों में बंट गया। जहां लेखकों, आलोचकों ने इसकी प्रशंसा और स्वागत किया वहीं एक वर्ग ने इसे प्रकाशन का शो ऑफ़ बताया और ये अचरज भी कि अगर एक लेखक को वाकई इतनी रॉयल्टी मिल सकती है तो क्या प्रकाशन बाक़ी लेखकों को कम रॉयल्टी देकर उनके साथ धोखा करते हैं। यहां ये भी जानना ज़रूरी है कि पहले विनोद जी की किताब दूसरे प्रकाशनों से आती थीं, जहां से वे किताबों को वापस पाने का भी संघर्ष कर रहे थे। लेकिन तब चर्चा उठी कि विनोद जी जैसे गंभीर और विस्मयकारी लेखक की किताबें कितनी कम बिकती हैं। 

लेकिन कुछ ही समय में हिन्द युग्म ने उस बहस को पूरे 180 डिग्री पर घुमा दिया। कई बार, अनेक मंचों पर ख़ास तौर पर हिन्दी साहित्य में बात होती है कि अंग्रेज़ी की तुलना में यहां कम पाठक और ज़ाहिर तौर पहर कम रॉयल्टी है, फिर बदलते ज़माने और पीढ़ी के साथ, भाषा के वैश्विकरण के इस दौर में ये बहस और भी तीखी होती है। तीखी से अधिक चिंताजनक लेकिन एक कमाल की बात और आंकड़ा ये भी है कि विनोद जी सरीखे लेखकों की जितनी किताबें प्रकाशक और उनके वितरकों की ओर से बिकी हैं उतनी ही उसकी पाइरेटेड कॉपी भी। हिंदी किताबों का पाइरेटेड बाज़ार भी कितना समृद्ध है, ये मेट्रो के नीचे या सिग्नल पर बिकती किताबें पढ़कर आपको पता चलेगा। ये ठीक है कि हिंदी के बरअक्स वहां अंग्रेज़ी बहुतायत है कि लेकिन हिंदी की जो किताबें बिक रही हैं वो फिर धड़ल्ले से बिक रही हैं, रॉयल्टी में सेंध लगाते हुए बिक रही हैं। तो ये भी मानना चाहिए कि विनोद जी को मिला 30 लाख के चेक उस स्थिति में कम है जब उनकी पाइरेटेड किताबें भी उतनी ही हिट हैं। 

बहरहाल, 30 लाख का चेक 6 महीने में हिंदी लेखक को मिलना इतना जादूभरा है कि ख़बर का विषय बन गया है। विनोद कुमार शुक्ल पर मैंने इस बीच कितने लेख पढ़े, कितने वीडियो देखे, कितना उन्हें जाना और पता चला कि वह अपनी कविताओं का ही एक अनुवाद हैं। एक लेखक के तौर पर उन्होंने जिस तरह सबको चमत्कृत किया है ये उनकी कलात्मक पीढ़ियां भी करें। जैसे हिंदी के दिन बहुरे, वैसे ही बने रहें। 

इससे पहले अचल मिश्रा और मानव कौल ने विनोद जी पर एक वृत्तचित्र बनाया था, इस पर एक लेख लिखा था। आप भी वो वृत्तचित्र देखकर लौटिए और बताइए कि क्या कहेंगे साहित्य के वटवृक्ष के बारे में।

विरोध के बाद लौट के फिर से प्रेम में आना भी पड़ता है -
- विनोद कुमार शुक्ल

अचल मिश्रा और मानव कौल ने विनोद कुमार शुक्ल पर बढ़िया डॉक्यूमेंट्री बनाई है ‘चार फूल हैं और दुनिया है।’ जब से ये आई, इसे देखने की जल्दबाज़ी थी। ऐसा लगा कि घर के किसी बुज़ुर्ग की कहानी है, बातें है। गर्मी की आमद के दिनों में पंखे की खड़-खड़ आवाज़ के नीचे तखत लगाकर बैठे दादाजी अपने क़िस्से सुना रहे हैं और घर के तमाम लोग उन्हें ध्यान से सुन रहे हैं। सीमित दृश्य में पूरे विश्व की कल्पना करना इसे ही कहते हैं। फिर विनोद जी ख़ुद कहते हैं कि “आप जितने स्थानीय होंगे उतने वैश्विक होंगे।”

वे अपनी पत्नी से प्रेम और मूल्यों से लेकर, स्मृति, लेखन-प्रक्रिया और उसमें बदलाव तक पर बात करते हैं। वे कम हंसते हैं लेकिन मुस्कुराते भरपूर हैं। वटवृक्ष के नीचे  बैठे पौधे हवा की आवाज़ सुन रहे हैं, वे मौसम महसूस कर रहे हैं, मन में बसंत उग रहा है। एक लेखक दूसरों को भी कलम उठाने पर मजबूर कर रहा है। वह कहते हैं कि “हर आदमी को एक किताब लिखनी चाहिए; कम से कम इस बात की कोशिश करनी चाहिए।”

विनोद जी ने कई किताबें लिखी, कुछ अब भी छपने का इंतज़ार कर रही हैं, नौकर की कमीज़ पर तो मणि कौल ने फ़िल्म भी बनाई। वह मणि कौल और मुक्तिबोध को इस वृत्तचित्र में याद करते हैं। वह याद करते हैं कि भूलने में याद करना शामिल हैं और याद करने में भूलना। बताते हैं कि उन्हें कविता पढ़ना पसंद है, कविता पढ़ना यानी “एक लेखक का ज़िंदा रहना मतलब अपने लिखे हुए को बताना - कि मैं अभी भी लिख रहा हूं।”

एक लेखक की परिकल्पना जो हम करते हैं, उससे कोई व्यक्तित्व जो मेल खाने लगता है तो लगता है कि स्वप्न देह के आकार में सामने खड़ा है। वह रेलिंग पकड़कर छत्त पर चढ़ते हैं, कुर्सी झाड़कर बैठते हैं कविता पढ़ते हैं, उसमें एक पंक्ति है कि - ‘ये इन्हीं दिनों की बात है कि इन दिनों मैं हूं।’ पता नहीं क्यों लेकिन ये सुनते ही आंसू निकल पड़े।
जितना लिखा जाए कम है। कई बार तैरने से ज़रूरी डूबना होता है।
 
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एक महीने पहले

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