आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

जोश मलसियानी: वतन की सर-ज़मीं से इश्क़ ओ उल्फ़त हम भी रखते हैं

उर्दू अदब
                
                                                         
                            वतन की सर-ज़मीं से इश्क़ ओ उल्फ़त हम भी रखते हैं 
                                                                 
                            
खटकती जो रहे दिल में वो हसरत हम भी रखते हैं 

ज़रूरत हो तो मर मिटने की हिम्मत हम भी रखते हैं 
ये जुरअत ये शुजाअत ये बसालत हम भी रखते हैं 

ज़माने को हिला देने के दावे बाँधने वालो 
ज़माने को हिला देने की ताक़त हम भी रखते हैं 

बला से हो अगर सारा जहाँ उन की हिमायत पर 
ख़ुदा-ए-हर-दो-आलम की हिमायत हम भी रखते हैं 

बहार-ए-गुलशन-ए-उम्मीद भी सैराब हो जाए 
करम की आरज़ू ऐ अब्र-ए-रहमत हम भी रखते हैं 
 

गिला ना-मेहरबानी का तो सब से सुन लिया तुम ने 
तुम्हारी मेहरबानी की शिकायत हम भी रखते हैं 

भलाई ये कि आज़ादी से उल्फ़त तुम भी रखते हो 
बुराई ये कि आज़ादी से उल्फ़त हम भी रखते हैं 

हमारा नाम भी शायद गुनहगारों में शामिल हो 
जनाब-ए-'जोश' से साहब सलामत हम भी रखते हैं 

एक वर्ष पहले

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही

अब मिलेगी लेटेस्ट, ट्रेंडिंग और ब्रेकिंग न्यूज
आपके व्हाट्सएप पर