जब चाहा इक़रार किया है जब चाहा इंकार किया
देखो हम ने ख़ुद ही से ये कैसा अनोखा प्यार किया
ऐसा अनोखा ऐसा तीखा जिस को कोई सह न सके
हम समझे पत्ती पत्ती को हम ने ही सरशार किया
रूप अनोखे मेरे हैं और रूप ये तू ने देखे हैं
मैं ने चाहा कर भी दिखाया या जंगल गुलज़ार किया
दर्द तो होता ही रहता है दर्द के दिन ही प्यारे हैं
जैसे तेज़ छुरी को हम ने रह रह कर फिर धार किया
काले चेहरे काली ख़ुश्बू सब को हम ने देखा है
अपनी आँखों से उन को शर्मिंदा हर इक बार किया
रोते दिल हँसते चेहरों को कोई भी न देख सका
आँसू पी लेने का वा'दा हाँ सब ने हर बार किया
कहने जैसी बात नहीं है बात तो बिल्कुल सादा है
दिल ही पर क़ुर्बान हुए और दिल ही को बीमार किया
शीशे टूटे या दिल टूटे ख़ुश्क लबों पर मौत लिए
जो कोई भी कर न सका वो हम ने आख़िर-कार किया
'नाज़' तिरे ज़ख़्मी हाथों ने जो भी किया अच्छा ही किया
तू ने सब की माँग सजाई हर इक का सिंगार किया
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